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Ends - fol. 100
अन्योन्यस्य धनव्ययाय सहजब्यापारबंधुस्थितास्तत्काले सुइदः स्वतुंगभवनेष्वे के रयस्त्वन्यथा ॥ द्वेकानुक्तभयात्सुहृत्सम रिपून्संचित्य नैसर्गिकास्तत्काले च पुनश्च तानधिसुहृन्मित्रादिभिः कल्पयेत् ॥ ८ ॥
Vedangas
Reference - See No. 1029 / 1886-92.
( होरा ) मकरन्दटिप्पण called अभिनवतामरस
( Horā ) Makarandatippana called Abhinavatāmarasa
No. 1310
Size — 93 in. by in.
Extent – 5 leaves; 16-17 lines to a page; 52 letters to a line. Description - Country paper; Devanāgarl characters; old in appearance; handwriting very small but clear and legible; red pigment used for marking ; edges worn out; complete.
Age Appears to be very old
Author
960
1886-92
Purusottamabhaṭṭa; Aufrecht ascribes this commentary to Krsnaśarman (cf. C. C. 1, 419a )
Ends - fol. 5a
Subject - A commentary on the Horamakaranda of Guṇākara. Begins - fol. 1a
श्रीगणेशाय नमः ॥
कौमारके ककलकूजित मैंद्रनील कैलासशैलशिखरे क्षणजं निशम्य ॥ संजातकांत पृषदं वदनं भवान्या दृष्टवा स्मितां चितमुखोऽवतु विश्वमीशः ॥
9 etc.
अग्रे नक्षत्रसंचारः कुजौ भांशाल्यके प्रहे अधिके वक्रगे प्रोक्तोन्यथा व्यस्तं बुधै स्मृतं अत्र युक्तिः स्फुटा
के क्येनो भुवि संति तेतिविकटज्योतिर्महांभो निधौ मार्ग सेतुमिवोद्ध सुखकरं ये कुर्वते हेलया तत्प्रज्ञांबुधिमनमुज्वलतमं सघुक्तिरत्नं स्वयं लोके किं प्रकटीकरोति मनुजः कृष्णाक्षिपादाहते ॥