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Vaidyaka
अलष असूरति अलष गति किनहिन पायो पार ॥ जोति सकल कविजन कही देही देव मतिसार ॥ २ ॥ वैद्यग्रंथ सब माथ करें रचिउ सुभाषा आनी ॥ अर्थ देषा प्र करी उषध रोगनिदान || ३ || मम मति अल्पसुं कहत हैं कविमती परम अगाध ॥ सुगमचिकित्साचितरचित षमहु सबई अपराध ॥ ४ ॥ वैद्यमनोत्सवनामधरी देषि ग्रंथ प्रगास | केशवराजत नयनसुष श्रावककुलहि निवास ॥ ५ ॥ प्रथमनसालक्षणकहुं देषि ग्रंथ मति सोइ ॥
पुनियानी अनुभावहिं जइसी मम मति होइ ॥ ६ ॥ etc.
Ends.- fol. 12a
वैद्यन
परमीत ग्रंथ समूह सम मम मति षोजति पार || ऊषध रतन सुत गेह काए प्रगट संसार || ५ ॥ वैयमनोत्सव ग्रंथ महीदं कहियो सकल निज आनि ॥ दुषकंदन पुनि दुषकंपन पुनि मुषकण आनंद परमति धानी ॥ ६ ॥ केसवराजस्त नयसूष का यो ग्रंथ असृतकंद ॥
सूभ नगर सिह चंदमें अकबर साह निरंद ॥ ७ ॥
अंक वेदर समेदनी १६४९ सुक्ल पक्ष चैत्रमास ॥ तिथि द्वितीया भृगुवार पुनि पुष्यचंद्र प्रगास ॥ ८ ॥
• मात्रा अंग सुछंद पुनि कहा यो अल्प ( fol. 12 ) मतीह ॥ ९ ॥
काय प्रगटि दधिमथ ऊषध निरोगनिदान पूनि ॥
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सकल सुधासम ग्रंथ कहा यो समझि आदि अंति महं ॥ १० ॥
इति वैद्यमनोत्सव सप्तम उद्देश संवत् १७ ४९ पोष सुदी तिथौ दशम्यां
शनिवासरे सादडानगरेः ॥ श्रीरस्तुः ॥ कल्याणमंगलमालिकाः ॥ श्री
References. It is not mentioned by Aufrecht in his Catalogus
Catalogorum.
Vaidyamanotsava
1524.
1891-95.
No. 278
Size. - 123 in. by 6f in.
Extent.---- 17 leaves ; 13 lines to a page; 32 letters to a line.