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Vaidyaka
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Ms. is incomplete and stops in the middle of the 5th part Paper is old. Although the date of composition is given yet the year is not given.
Age.-- Appears to be old.
Author.—– Śivarāmaji Kayastha.
Begins.fol. rb
श्रीगणाधिपतये नमः ॥
गणपति सरसति गुरुचरण नमन विघन सब जात ॥ ज्यौं दिनकरपरकासतें तससमूह न रहात ॥ १ ॥
सकल सुनानि तिबन की हिकमत समुझनकाजु ॥
शिवराम कायथ लिखी हुकम पाय महाराजु ॥ २ ॥
परमात्मा पुरुषको नमस्कार करों तिनसो सब श्रेष्टि उपजी है अंतमे उसी में समागी उनतौं हिकमती अनेक प्रकार की संसार मैं प्रगट भई हैं ति हिकमतसौं बाहिर कबू वात रही नही प्यार प्रकारकी श्रृष्टि पांच तत्वस पेदा करी हैं कांनी षांनी की श्रृष्टि मादनी घातकी श्रृष्टि नवाती वृक्षादिक की श्रृष्टिवांनी जीवकी श्रष्टि पांनीकी सृष्टि में पृथ्वीतत्व है धात कष्ट अति हैं वृक्षकी श्रृष्टि जलतत्वसै है जीवकी सृष्टि पवनतत्व से हैं आकासतत्व पाली हें तिन मे ए सब माय रहे हैं सबसृष्टिमें जीवकी सृष्टि मुष्प तिनमे अनेकभेद हैं तिनमैं मनुष्यको श्रेष्ट राष्यो हे मनुष्यमें - विवेकबुद्धि विशेष हे सो मनुष्य के कारर्ने तीन विद्या परमात्माने बनाइ हे एक तो ग्यानकी दूजी विद्या धर्मकी तीजी विद्या हिकमतकी औषधकी जलेकी तिन तीनो विद्यामे जानकी विद्या बडी हे इनसो देहकी रष्याके जन्न aft आवैं देही निरोग रहें तो धर्मग्यांन दोनों सधैं इनकारनतैं हिकमती तवा हकीमो कहैं माफक ग्रंथ विचार भाषाकरी जिनसो सागिरद सिताब समझे श्री हजरत साहिब आलमस्याह के अहदमे श्रीमहाराजाधि राज राजा श्रीकिसोरसिंघजी बहादुर छत्रीकुलगोडवसावतंसके राजमे नगर श्रीपुरमध्ये मिति जेठ सुदि ५ मंगलवारके दिन शिवजीरामकायस्थ मोडनें बहतेक तिब्ब हिकमतिकी सारवस्तु संग्रहकरी वैद्यकसारसमुचय ग्रंथ शिष्य घुसालनाम ब्राह्मणसनाबढके पढने को बनाया
etc.