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Vedangas
क्षेत्रान्वये विष्णुदासस्तेनाहं प्रार्थितः किलः ॥. पारासरीजातकस्य भाषां कृत्वा ममार्पय ॥२॥ गूढर्यान्प्रकटीकृत्य सशेष सुखबोधकृत् ॥ पारासरीजातकं तु भाषया लिख्यते मया ॥ ३ ॥
फलानि ॥ दमिति सिद्धांतओर उपनिषदनमें प्रतिपाद्य ब्रह्माको शुद्ध अंतस्करण ॥ रक्तवाटवीणाकौं धारण करै । ऐसो जो कोई ताकी उपासना
करो हौं ॥१॥ etc. Ends -fol. 13a
कर्मलनाधिनेतारा॥ वित्यस्यार्थः। कर्मकहीयें दशमको स्वामी तो लग्नमैं होय ॥ भरलनको स्वामी दशमे होय तो राजयोग कहीयें ॥ येसे योगमें जाको जन्म होय सो मनुष्य सर्वत्र विख्यात होय ॥ अर विजयवान होय ॥४०॥
धर्मकर्माधिनतारावित्यस्यार्थ नवमस्थानकको स्वामी दशमस्थानमें होय॥ भर दशमको स्वामी नवमे होय यह राजयोग कहिये ।। यामे जाको जन्म होय तो विख्यात विजयवान होय ॥४१॥
पारासरीजातकस्य व्याख्यान भाषया कृतं । श्रीविष्णुदासस्य मुदे परमार्थसुखेन तु ॥ ४२ ॥
इति पारासरीभाषाफलं समाप्ताः। संवत् १९२६ ना श्रावण शदि ९ सोमवासरे समाप्तोयमिदं ग्रंथम् ॥
उपदेशसूत्र
Upadesasūtra
406 . .. No. 276
1895-98 Size - 111 in. by 4 in. Extent - 6 leaves; 10 lines to a page; 40-42 letters to a linc. Description -Modern paper with water marks%3 Devanagari chara.
cters, new in appearance%3B handwriting clear, legible and unlform; borders not ruled; white chalk used for corrections%B
the Ms. contains 1-4 Pādas. Age - A modern copy. Author - Jaimini (?) Subject - Jyotisa, a treatise on horoscopy.