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________________ 2.90 +1 + Jaina Literature and Philosophy तथाजु दौलतिरामकूं । मल्ललिंबी इहवात । करहु भाषा हरिवंसकी । सबैक चित सुहात ॥ १४ ॥ सर्व साधर्मि निमिलि इहैं । श्रीचैत्यालयमांहि । भाष दौलतराम । जिनश्रुति तै अघजाही ॥ १६ ॥ रतनचंद दीवांन इक । भूपति के परधान । तिनके भाई सुभमती । विधीचंद परवान् ॥ १८ ॥ सो दौलतिके मित्र क्षति । भएजु उद्यमरूप । तिनके आग्रह तैं इह । टीका भई अनूप ॥ १९ ॥ दौलतिने अतिभाव धरि । भाषा कीयो ग्रंथ | महासा तरेस कौ भरचौ । सुरगमु कतिकौ पंथ ॥ २० ॥ सीताराम लेषका । बहुरि सवाईराम । तिन पै वायो इ । बहुत कथा कौ धाम ॥ २१ ॥ etc. अठारह से संवतांता परि धरि गुण तीस वा सुक्र पून्यौ तिथी । चैत्रमास रति ईस ॥ १६ ॥ ता दिन इहपूरण भया । श्रीहरिवंस पूराण । पढौ सुमौ अरसरदी । पंडित करौ वषाण ॥ २७ ॥ etc. इति श्रीहरिवंसपुराणभाषावालाबोध संपूर्ण ॥ यग्रंथ सवाई जय )पुर मैं चैत्यालयाकै निकठि धरि लिख्या । सं. दीवार संपूर्ण भया ॥ [ 1166 आमरकै बजार श्रीवासपूजिजिका १९३२ ( आ ) साढ शु० १५ (मा)
SR No.018112
Book TitleDescriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 19 Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Rasikdas Kapadia
PublisherBhandarkar Oriental Research Institute
Publication Year1988
Total Pages328
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size18 MB
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