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1082]
The Digambara Works
199
Description-Complete. For other details see No. 934 (a) 1892-95
जैनशतक. Author - Lalacanda. Subject - A chapter of the life of Bhagvān Neminātha and Rājula. Begins - fol. 30a .. .
म राजलपचीसी लिषते ॥ प्रथमही सुमरी जादुराय ॥ फुनि सारद ही मनावस्यों जीववे ॥ वंदु सपनां गुरके पाय राजमती गुण्ण गावस्यों जीववे ॥ गांऊं मंगल राजलपचीसी ॥ नेम जब न्याहन चंढे ।। सब देषि पसुबन दया उपजी ॥ छोडि सब बन कुंचले ॥
'गिरनार 'गढ परि जायकै प्रभु जैन दिव्या भाचरी ॥ .
. राजल तबै कर जोरि विनवै ॥ पितासों विनती करो ॥ etc. Ends - fol. 346
भवि जन हो जो इह पत्रीकाल फुनिही सुरधरि गावही जीववे भविजन हो जो सव तजि जंजाल द्वादस भावना भावही जीववे भावना एह राजलपचीसी जो कोह सुनि धरि भावसौ .
सो होय सुर नागिंह चक्री अंतिस्यव पुरजावसी पहलालचंद विनोदी मन बच गावे सुनत सव जन गहभरे राजलपचीश्री नेमजीकी सबनको मंगल करै संपुण्ण ॥
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रुक्मिणीविधानकथा :
Rukminividhānakathā
634 (4) No. 1082
1875-76 Extent - fol. 284 to fol. 29b Description - Complete. For other details see Candanasastika supra. Author - Chatrasena. Subject - Life of Rukmini narrated for elucidating the vow of
: Rukmini'. Begins -fol. 28a
भथ रुकमिणीकथाविधान लिप्यते ॥ . .