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Jaina Literature and Philosophy
Begins.— (text) ( 1st set ) fol. 26 पयाहिणाणुकूलंांस भूमिसि (स) प्पंसि मारुयंसि पवायांस निष्प (प )नमेयणीयंसि कालंसि पमुइयपक्वीलिएस जणवएस etc.
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( com. ) ( 1st set ) fol. 264 आरोग्य रोग त्रिसला मातानहं सुख भगवंतनइ सुखइ महारक (?) श्रीवर्द्धमानस्वामी त्रिसलायइ जायउ इतरइ श्रीवर्द्धमानस्वामीक (न) उ जन्मकल्याणक हूयउ etc.
Ends. — (text ) ( 3rd set ) fol. 21 मामेते उत्तमा पहाणा मंगल्ला सुमिणा अन्नेहिं पावसुमिणाहिं पडिहामि (म्मि) स्संति त्ति कट्टु देव [य] गुरुजणंसबद्धाहिं पसत्थाहिं मंगला मियालाहिं कहाहिं सुमिणजागरिथं पडिजागरमाणी विहरइ
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— ( com. ) ( 3rd set ) fol. 21 अर्थ: माहरा उत्तम स्वप्न प्रधान फलना दायकं मंगलीक रूप चव( उ ) दह स्वप्न अनेरें बीजे पाइए सुमिणे दीठे मत हणार तेह भणी शेष रात्रि जे छइ ते देव गुरु संबंधी ए धवल मंगल गीत गाने करी धर्मनी कथायइ करी स्वप्न राषिवा भणी रातीजागरण रातीजगउ 8 करती सुखइ समाधइ रहइ जिम आगइ वाचना संध्याकालइ हुस्यइ । निर्विघ्नपणइ जे आराधयइ ते विधि चैत्यालय पूज्यमान श्रीपार्श्वनाथ तणइ प्रसादि गुरु अनुक्रमइ ॥
मुविहितगच्छशिरोमणिश्रीउ (दू) द्योतनसूरिश्रीवर्द्धमानसूरि । श्रीजिनेश्वरसूरि । सप्रभाबक श्रीस्थंभ नकपार्श्वप्रगटीकृतश्री अभयदेवसूरि । चउसठि - योगिनीजेता युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरि । भट्टारकप्रभुश्री जिनकुशल सूरि । श्री अकबर प्रतिबोधकयुगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरि । तत्पट्टे श्रीजिनसिंहमूरि । तत्पट्ट प्रभाकरभट्टारकश्री जिनसागरसूरिनी आज्ञा जयवंत प्रवर्त्तई ॥ श्रीरस्तु ॥
छ ॥
कल्पसूत्र टब्बासहित
No. 540
Kalpasūtra with tabba
830.
1899-1915.
Size.— 1o in. by 4g in.
Extent.— 199 folios; 14 line to a page ; 32 to 4o letters to alline.