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389.] VIII. Supernumerary Prakirnakas
349 एस जंबूचरीय जे सुच्चा सहहसि से आराहग्ग भाणियव्या ..
जंबूअज्झयणा एगगविसमो उदे(हे)सो एवं जंबूअज्झयणं समत्तं उवज्झायश्रीपद(द)मसुंदरगाणिकृतं आलापकस्वरूपं संपूर्ण समाप्त श्रीः ॥ —(com.) fol. 50* एवं इण मेले सर्व जंबूनौ अध्ययन संपूर्ण उपाध्याय श्रीपदमसुंदरगाणिकृतं ते कह्यो ए आलावौ जंबूनौ संपूर्ण ॥ समापतं ॥ श्री ॥ संवत् १८९९ रा वर्षे शाके १७६५ रा प्रवर्त्तमाने मासोतममासे जेष्टमासे शुक्लपष्ये २ तिथौ बुधवारे श्रीसारदाए न्म ॥ पं० प्रगुरांजी श्री१०८श्रीवासाजणजी तशिष्य वा श्री१०८श्री श्रीनारायणजी तत्शिष्य पं० प्र । श्री. १०८श्रीदानकुशलजी तशिष्य पं० प्र श्री१०८श्रीसत्यविजयजी तत्शिष्य प्र श्री१०८श्रीकपूरभद्रजी तशिष्यलिषतं पं० लक्ष्मीपुरंदरमुनिश्रीजिनचंद्रसूरजीशापायं श्री वृधखरतर'मछे श्री आसाढायामें चतुरमाच(स) क्राक)तं लिषीतं श्रीरस्तु etc.
जब लग मेरु अडग है तब लग शशि हर सूर
जब लग आ पोथी सदा रह ज्यौ गुण भरपूर ॥
श्रीरस्तु॥ Reference.— See No. 387..
जम्बूस्वाम्यध्ययन
Jambūsvāmyadhyayana खालावबोधसहित
with bālāvabodha
350. No. 389
1871-72. Size.— 104 in. by 4} in. Extent.- $4 folios; 6 lines to a page ; 40 letters to a line. Description.-Country paper rough and white; Devanagari charac
ters; this Ms. contains the text as well as the interlinear commentary; the former witten in a big hand, the latter in a small one; clear and good hand-writing; borders ruled in two lines and edges in one, in red ink; red chalk and yellow pigment used; fol. ra practically blank except that the title etc., written on it; foll. numbered in both the margins; condition very good; both the text and the
commentary complete. Age- Pretty old.