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IV. 12 Upangas
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blank; edges of the first five foll. more or less damaged ; some of the foll. worm-eaten ; notes in Gujarati written in the margins of foll. 83, 84 and 213 to 2233; foll. 123 to 315 have their edges more or less worn out; condition on the whole fair ; fol. 199 repeated; so is the fol. 237; the 316th fol. is unnumbered and seems to have been written in a different hand on a different sort of paper; complete ; extent 8100 ślokas.'
Age. — Samvat 1771. Begins.-fol. I ॐ नमो(मः) श्रीवीतरागाय
... नमो अरहंताणं नमो सिद्धाणं etc., as in No. 214. Ends.-fol. 316 जातिजरामरण etc., up to गणनया as in No. 214
followed by अनुष्टुपदं(पहुंद)सा मानमिदं ग्रंथाग्रंथ ८१०० प्रमाण छई इति पण(ण्ण)वणासूत्रं समाप्तं ॥
श्रीमत् तपागणविभासनतापनाभः
_ भव्याशु(सु)मह]हृदयकैरवराजिरंजः . आसीद् गुरुर्विमलसोमगणाधिराजः
सौंदर्यधीरगुणमंडलवारिराशिः ॥१ . . ..... गच्छे तत्र विशालसामगुरवः श्रीसूरयः सांप्रतं ।।
वर्तते महिमंडले गणपदप्ताप्त(प्राप्तप्रतिष्ठास्पदं ॥ नानावाङ्मयसागरांबुतरणे सदबुद्धिनावांचिता।
चारित्राचरणेन दुष्करतपः श्रीस्थूलभद्रोपमाः॥२ तद्गच्छे(भूत् क्रियापात्रं विद्वज्जनशिरोमणी। श्रीमद्विमलष(पं)डितपांडताग्रणी(:) ॥३. तत्सित्यशेवकधनविमल साधुधनविमलसतः । प्रज्ञापनाख्यसूत्रम्(स्य) वार्ता चक्रे मनोहरा ॥४.. यत्क्वचित् लिषितं कूटं सूत्रार्थोभयतस्तथा। विद्वद्भितकमेथ्य सर्वे सो(शो)ध्यं कृपापर(:)। (५) .
संवत् १७७१ वर्षे समाप्ताः ॥ N. B.-For other details see No. 214.
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