________________ 288 Tantra [26. Ends.- fol. 8. अष्टमवर्गस्य प्रयोगमुच्यते // येनोदमेदारुदर्भ शयानमिति | सकलक्रियायां पंचास्त्रं प्रयचं संपुटी जपेत् // न तत्प्रयोगः // यो में करोति पंचमिग्भिः / अश्वत्थं स्पृष्ट्वा जपेत् // आयुरारोग्यैश्वर्याणि भवंति / अपमृत्यु जयति // ॐ शांतिः शांतिः शांतिः / / 7 // // // 7 // 7 // शुभं भवतु // देवब्राह्मणपादारविंदो अचंचला भक्तिरस्तु // आयुष्मत्स्वरूपअनेकगुणबहुमपुत्रावाप्तिरस्तु / / सर्वे जनाः सुखिनो भवंतु // समस्त मंगळानि भवंतु // राजा धार्मिको विजयी भवतु // धर्माविरो धेन सकलचिंतितमनोरथसिद्धिरस्तु॥ References.-- Aufrecht mentions only our Ms. in his Catalogus . Catalogorum i, 3514. - - प्रत्यद्विारासहस्रनाम Pratyangirasahasranama No. 262 104. 1884-87. Size.-5 in. by 3rd in. Extent.-- 32 leaves ; 7 lines to a page ; 17 letters to a line. Description.- Country paper ; Devanagari characters ; hand-writo ing good. ___A hymn containing 1000 names of goddess Pratyangira (or Durga). It purports to form part of Angirasakalpa (see 959 of 1887-91), although this text is not found in the ms. of Angirasam. It bestows supernatural powers on one who repeats it. Age.- Sam. 1865. Author.- Anonymous. Begins.- fol. 10 श्रीगणेशाय नमः // श्रीप्रत्यंगिराय नमः॥ प्रणम्य वक्रतुंडाय सरस्वत्या प्रणम्य च // प्रणम्य श्रीगुरुनाथं अविघ्नं पाठकं कुरु॥१॥ भगवत्या महाकृत्या सहस्रनामेव चोत्तमं / / लेखनात्सर्वपापघ्नं शृण्वतां पदनामभिः॥२॥ ऋषय उवाच / पिप्पलादौगिरागस्ति मार्कण्डेय शोनको भृगुः / कश्यपोत्रिभरद्वाजसाख्याकोशिकगोतमः // etc.