________________ 282 Tantra [356. Author.--- Anonymous. Begins.- fol. 10 श्रीगणेशाय नमः // हरालप्रधान न देवो महेश्वरं / शैलाधिराजतनया संगे हरमुवाच // 1 // भीदेव्युषाच परमेश परं धाम प्रधानपुरुपेश्वर / / नानां सहस्रं वगलामुख्याः कथय मुव्रत // 2 // ईश्वर उवाच भणु देवि प्रवक्ष्यामि नामधेयसहस्रकं // परब्रह्मानविणायाश्चतुर्वर्गफलप्रदं // 3 // गुहादुह्यतरं देवि सर्वसिद्धकवंदितं // अतिगुह्यतरा विद्या सर्वतंत्रेषु गोपिता // 4 // etc. Ends.-- fol. 23 स्तवस्यास्य प्रभावन देवेन सह मोदते 168 स्तंभितावासराः सर्वे स्तवराजस्य कीर्तनात् 169 इति श्रीउत्कंठशंवरे नागेंद्रप्रयाणरे तंत्रे पोडपसहस्त्रेषु विष्णुशकर. संबादे पीतांबरासहस्रनाम संपूर्णम् मीती भाद्रपद कृष्ण 3 शनिवासरे सं० 1914 पीतांबरार्पणमस्तु भीरन्त कल्याणमस्तु छमं पूयात स्वस्ति / Reterences.- Aufrecht records only this ms. in his Catalogus Catalogorum iii, 72. पीताम्बरास्तोष Pitambardstotra 996. No. 257 1891-95. . Size.- Sf in. by sfin. Extent. - 4 leaves ; 21 lines to a page ; 16 letters to a line. Description.- Country paper; Devanagari characters; handwriting good ; two lines in red ink on each border. Paper is worn out and musty.