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Nataka
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Ends.- fol. 460 विदूषकः वामरिया उदि जंतुहुया सेलज्जमोषकं कीरदु
भो वयस्स भामर्यो दीयतां हुता शेलाजा मोक्षः क्रियतां भ्रामर्यो नाटयतः नायिका धूमेन विमुखी राज्ञीपरिवारा निक्रांता राजा सर्वे करोति विवादं निवर्त्य सोत्साह सर्वानपि यथाहमभ्यर्च्य विसर्य चाचक्रवर्ती भूत्वा तयासह आसांचके सहर्षी इति निक्रांता सर्वेच्छाः॥
॥ इति श्रीमत्सूर्यवंशोद्भवसहिगिलकुलावतंसश्रीमत्प्रयागदासांगलश्रीप्रेमराजविरचिते कर्पूरकुसुमनाम्नि कर्पूरमंजरीभाष्यचतुर्थ यवनिकांतरं समाप्तमिति ॥ ॥ श्रीरस्तु ॥ कल्याणमस्तु ॥ ॥ शुभं भवत् ॥ ॥ संवत् १९३१ प्रथम आषाढ शुक्लपक्षे तिथौ षष्टयां शनीवारे लिखितमिदं व्यासगोपीदासात्मजेन । मलाख्यनाम्ना ॥ ॥श्रीजयशीलनगरे ॥
कर्पूरमधरी
Karpūramañjari with
with भाष्य कर्पूरकुसुम
Bhāsya Kārpūrakusuma No. 52
700.
1899-1915. Size.- 11 in. by 48 in. Extent.— Is leaves ; 21 lines to a page ; 60 letters to a line. Description. - Country paper; Devanagari characters with LUATEITS;
very old in appearance ; hand-writing, very small and closely written but clear, legible and uniform ; borders ruled in two double black lines; square blanks in the centre of folios; portion marked with red pigment and correc
tions made with yellow pigment; complete. Age.- Sarivat I489-90. Author (of the text).- Rajasekhara.
, (, ,, comm).- Premaraja. Begins.- fol. I
॥५०॥ भई भोट्ठ etc. as in No. 46. सरस्वत्याः भद्रं भवतु ॥ कवयो व्यासादयो नंदंतु ॥ etc.