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Nataka
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श्रीमाहाराजाधिराजवेदशास्त्रसंपन्नगुरुकृष्णशास्त्रीचरणार्विदेभ्यो नमः॥ श्री॥श्री ॥ छ ॥ श्रीगुरुभ्यो नमः ॥ श्रीसरस्वत्यै नमः ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ श्रीगुरुदत्तात्रयेन्मः समत १९१४ स० १७७१ तीथौ १ सनवासरे माहे माघ शूधप्रतिपदा सनवासरे तहीने लीखितं नरसिम्हात्मजसहदेवेन ॥ भीरस्तु ॥ ॥ श्रीपरब्रह्मणे नमः ॥ अनुमान प. उपमान प्र० प्रत्यक्ष प्र. शब्द प्र. सभव प्र० अनुपलब्धि प्र० अर्थापत्ति प्र. अयतील प्र०॥दोष ॥ अमममा.
दकरणापाटव References. - See No. 190.
रत्नावली
Ratnāvali
762. No. 202
1885-92. Size.— 89 in..by. 3} in. Extent.- 38 leaves ; 8 lines to a page ; 36 letters to a line. Description.- Country paper; Devanagari characters; old in ap
pearance; hand-writing clear, legible and uniform; bordars ruled in double black lines ; red pigment used; yellow pigment used for corrections ; folio I missing ; edges worn out; folio 2 and folio to being torn, pasted with paper
slips; incomplete. Age.- Appears to be old. Author.-- Sii Harsa. .
Begins.-abruptly fol. 20
द्विजवृषभा निरुपद्रवा भवंतु॥ जयति च पृथिवी समृद्धसस्या प्रपतंतु चंदवपुनरेन्द्रचंद्रः ॥४॥
नांद्यते सूत्रधारः etc. as in No. 190. fol. 10 प्रथमोंकः॥ fol. 22* द्वितीयोंकः॥ fol. 31" तृतीयोंकः ।