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198. ]
रत्नावली
fol. 160 प्रथमकः fol. 354 द्वितीयोंकः ।
No. 198
Size. -- - 84 in. by 43 in.
Extent. 71 leaves; 7-8 lines to page; 22-25 letters to a line. Description.— Country paper; Devanagari characters; old in ap-- 1 pearance; hand-writing bold, clear and legible; borders *!! ruled in red lines; red pigment used; yellow pigment used for corrections; fol. 35 missing; fol. 45 repeated ; edges of some folios moth-eaten ; complete.
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Age. - Samvat 1707.
Author.— Sri Harsa. Begins.fol.1b
fol. Sob तृतीयकः ।
Ends.-fol. 70a
॥ श्रीरामाय नमः ॥
पादाग्रस्थितया etc, as in No. 190.
Nataka
तथापीदमस्तु
followed by
239
Ratnavali
452.
1887-91.
जीवाग्रं विरमतु तपस्यज्यतामस्थिकोशो भूयादेषः स्तब पुनरसावस्तु कापालिकस्य ।
तत्राप्येवं वरदभवतोभ्यर्थये मे यथा स्याकंठे कंठो हृदि वहदयं गंडयोर्गेडलेखं ॥ २३ ॥
उर्वीमुद्दामसस्था etc. up to विशुनजनबच्चो बनाइजलेपः ॥ २२॥ as in No. 190.
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इति निष्क्रांताः सर्वे ॥ इति श्रीहर्षदेवविरचिता रत्नावलीनाटिका संपूर्णा ॥ संवत् १७०७ वर्षे भाद्रपदमासि कृष्णपक्षे चतुर्थ्यो रविवासरे लिखितेयं रत्नावली नाम नादिका ॥ छ ॥
यादृशं पुस्तके etc......... . कोपो न कार्यः खलु लेखकेन ॥ शुभमस्तु
भवान्याः प्रसादात्
References.— See No. 190.
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