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113.1
Ends.
Nataka
प्रत्यग्ज्योतिर्जयति यमिनः स्पष्टलालाट नेत्र
व्याजव्यक्तीकृतमिव जगव्यापि चंद्रार्धमौलेः ॥
नांद्यते सूत्रधारः आदिष्टोस्मि सकलसामंतचक्रचूडामणि मरीचि मंजरी नीराजितचरण कमलेन बलवदरि निवह वक्षस्तटकवाटपाटन
पर्जन्योस्मिन् जगति महतीं वृष्टिमिष्टां विधत्तां राजानः क्ष्मां गलितनिखिलोपप्लवां पालयंतु ।
तत्तन्मेषोपहततमसस्त्वत्प्रसादान्महांतः संसारांते विषममतातंकपंकात्तरंतु ॥ ४४ ॥
इति निष्कांताः सर्वे ॥ ४४ ॥
इति श्रीप्रबोधचंद्रोदय नाटके श्रीकृष्णमिश्रविरचिते जीवन्मुक्तिर्नाम षष्ठोंक: ॥ ६० ॥ समाप्तं चेदं प्रबोधचन्द्रोदयो नाटकम् ॥ जयत्यनंत्य (न्य) सामान्य (त्य) प्रकृष्टगुणवैभवः । संसारनाटकारंभ निर्वाहण कविः शिवः ॥ ॐ ॥ ४४ ॥
References. — See No. 98.
प्रबोधचन्द्रोदय
with टीका चिचंद्रिका
No. 113
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Size. 124 in. by 4 in.
Extent.- 105 levaes; 2-3 lines to a page ; 40 letters to a line (text). 6-8 "" (com). 45 Description.— Smooth country paper; Devanāgarī characters; hand-writing clear and legible but not uniform; borders ruled in two double black lines; red pigment used; some folios without borders; text in the middle with the comm. above and below it; complete..
Age.— Sarvat 1842.
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Prabodhacandroda ya with
Commentary Ciccandrika
92. 1919-24.
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