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Upanigads
[973
Ends - fol. 1910
तद्विष्णों ... य १ तद्विप्रासो विपन्यवो जागृवांसः समिंधते । विष्णोर्यत्परमं पदमिति वासुदेवोपनिषत् ॥ इति श्रीवासुदेवोपनिषत्समाप्तः ॥५६॥
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वासुदेवोपनिषद्
Vāsudevopanişad
30 (1) No. 973
1884-87 Size -93 in. by 4g in. Extent -130 to 15b leaves%3 8 lines to a page%3; 32 letters to a line. Description - Country paper; Devanāgari characters handwriting
clear, legible and uniform; borders ruled in double black lines; folios numbered in right hand margins; yellow pigment used for corrections; complete.
The Ms. contains the following Upanisads :1. Vasudevopanisad
13a to 150 2. Gopicandanopanisad
150 to 180 Hanumānopanisad
180to20a 4. Rāmopanisad
20a to 214 5. Yogarajopanisad
21a to 22b 6. Sundaritāpinyupanişad
22b to 270 7. Mrtyulangalopanisad
276 8. Krsnopanisad
284 to 25a 9. Krsnapurusottama-Siddhāntopanisad 30a to 300
All these Upanisads belong to the Atharvaveda. Begins-fol. 13a
श्रीगणेशाय नमः ॥ श्रीमथर्ववेदाय उपनिषदवावन उपल्या लिख्यते ॥
ॐनमस्कृत्य भगवंतं नारदः सर्वेश्वरं वासुदेवं पप्रच्छ श्रीभगवंनूपुड़
विधिं द्रव्यमंः स्थानादिसहितं मे ब्रहीति तं होवाच etc.. Ends-fol. 150
दिवीव चक्षुराततं तद्विप्रासो विपन्यवो जागृवांसः समिंधते ॥
विष्णोर्यत्परमं पदं ।। छ॥४॥ . इत्यथर्ववेदे वासुदेवोपनिषत्समाप्ता॥