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वेदनीनो बंध कह्यो छे तिहां एहवो पाठ , जे-"पढमे बंधइ,बीए वेएइ,तइए निज्जरेइ।" प्रथम समयें बांधे,बीजे समये वेदें,त्रीजे समयें निजरें. एहमां पणि वेदवाने समय निर्जरा नथी कही तिवारें इंम ठयु जे वेदवाने लगते समइं निर्जरा, ए रीतें चौदमानें छेहले समय १२ प्रकृतिवें वेदवू अने तेहनें लगतें समय निर्जरा, अनें निर्जरा तथा सिद्धिनो समय ते एक, जे समय निर्जरा तेह समये सिद्धि ए रिति छ । वली कोइ कहेस्ये जे एक समयमां उत्पाद-व्यय किम थाय ? तेहनें काहिंई,जे सिद्धिने समय सकर्मा पर्यायनो व्यय सिद्ध पर्यायनो उत्पाद ए पणि प्रगट छेकांय एक समयमा जे पर्यायनो व्यय ते पर्यायनी उत्पत्ति इम तो होय ज नहीं। वली श्री भगवतीसूत्रने धुरें "चलमाणे चलिऐ" इत्यादिक ९ प्रश्नमा पणि “ उदीरिजमाणे उदीरिए, वेदिजमाणे वेइए, निजरिजमाणे निजिन्ने । " एहमां पणि इंम कहां, उदीरवा समये उदेयु कहिई, वेदवा समये वेद्यं कहींई तथा निज्जरवा समई निजयु कहिइं । ते माटें वेदवानो तथा निज्जरवानो समय दो छई। जो जूदो न होय तो वेदना तथा निजरा ए में प्रश्न जूदां किम होय? । इति । बीजा कर्मग्रन्थनी टीका मध्ये बीजी गाथानी टीकामां चौदमा गुणठाणानो अर्थ को तिहां इम लिख्युं छे जे " शैलेशीकरणचरमसमयानन्तरमुच्छिन्नचतुर्विधर्मबन्धनत्वात् ।" इहां पणि शैलेशांना चरम समयनें अनंतर कहेंता लगतें समई चार कर्मबंधन उच्छिन्न थयां इत्यादिक । कागलमां केतली वात लिखाय ? पणि सर्वनो रहस्य ए जे चौदमागुणठाणाने छेहले समई प्रकृति १२ तथा १३ छती छे अने तदनंतर समई एहनो क्षय अमें एह ज समयें सिद्धि इति तत्त्वं।
ए वात गुरुजी पासें पणि चर्चा सहित घणी वार सांभली छे ते जाणवू डोसा धारसी तथा सहसमल तथा झवेरीने धर्मलाभ कहेवो. देवदर्शने संभारवा. अत्र संभारीइं ते अनुमोदवं. वलता पत्र पोहतानो समाचार देवो। चोमासु उतरें सिद्धाचलजी नीसर्या तो ए मार्गे जणास्यें, पछी तो जिम निमित्त हस्ये ते बनस्य । मिति श्रावण वदि ९ गुरौ। तथा वळी छठा कर्मग्रंथनी टीका ने छेहडे पणि एहवो पाठ , जे "ततोऽनन्तरसमये” इति । ए कागल कोइ ठाउका पासे वंचावज्यो सं. १८३३ वर्षे ।
॥ संघ मुख्य । वो। कसला डोसा योग्यं । कींबडी नगरे ।