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The Svetämbara Narratives Begins.- fol. !' श्रीगुरवे नमः ।
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च(चंद) कमल चंदन जेसी । मही मोती घृत पीर । पाणी यो वागश्वरी । उज्जल 'गंगा'नीर ॥१॥ हंसगामिनी ब्रह्मसुता । ब्रह्मवादिनी नाम । ब्रह्माणी ब्रह्मचारणी । त्रिपुरा करजे काम ॥२॥ दवकुमारी सारदा । बदने पूरे पास ।
नी(नि)ज सुपकारणि जोडस्युं । अभयकुमारनो रास । ३ ॥ etc.. Ends. --- fol. 486
रच्यो रास 'बंबावती'मोह जिहां बहु जिननो बासो जी। दूरग भलो जिनमंदीर मोटा । सायरतीर अवासो जी॥१०००॥१०॥ पोषधशाला स्वामीवच्छल । पूजा महोच्छव थाइं जी। तेणइं थानकिं ए रास रज्यो में । सहगुरुचरण पसाई जी ॥१००१॥ मु०॥ 'तप'गछनायक शुभ शु(स)पदावक । विजयानंद गुणधारी जी। मीठो मधुरी जेहनी वाणी । जे0 तार्या नरनारी जी॥१००२ ॥१०॥ भाषक तेहनो समकीतधारी । पूजे जिनवरपाजी। 'प्राग वंश सांगणमत सोहै। रीषभदास गुण गाईजी॥१००३॥१०॥ 'मंवत्' सायर दीर रस धरती (१६८७)। कार्तिक महीनो सारो जी। बहुल पप्प(क्ष) दीन नवमि मलेरी। बार गुरु चित धारो जी॥१००४॥४०॥ अभयकुमार मंत्रीसर केरो। कीधो रास रसालो जी। रीषभ कहै रंगह जे सणसे । ते पुषीआ चीर कालो जी ॥१००५॥ . . सुगतिपूरीमांहिं झीलेसि ॥ छः॥
इति श्रीरिषभदासविरचिते अभयकुमाररास संपूर्ण ॥ लेखकपाठकयोचिरं जीयात् ॥ बरहानपुरे ॥ संवत् १७७१वर्षे ।। अश्विनवदी २ भौमे - fol. 486 there is only one line as follows :
पांषडी भाविकानी परत छई सही ३ . Reference. For additional Mss. and extracts from one of them
see Jaina Gurjara Kavio ( Vol. III, Pt. I, pp. 923-924 ).
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