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Jaina Literature and Philosophy
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in one in red ink; red chalk used; foll. numbered in both the margins ; fol. !" blank ; so is the fol. 183° except that on it is written the title as sgiathaigata ; on foll. 1166, 117, 117, 1186 and 18" some verses from the Mahabharata etc. are quoted ; so Gujarati tabba is written interlinearly; in the left-hand margins the title is written as
श्रीचंदकेव, श्रीचंदके and श्रीचंद्र केवली ; complete ; edges of the _last fol. slightly gone ; strips of paper pasted to it; condition
_on the whole good. 10 Age.- Sarivat 1813; Saka 1679. ___Begins.- fol. 1 ॥५०॥ श्रीईष्टदेवतायै नमः || सकलभट्टारकपुरंदरभट्टारक
___ श्रीश्राश्री १०८ श्रीश्रीश्री विजयक्षिमासुरिश्वरपरमगुरुभ्यो नमः ॥
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सुखकर साहिब सेवी etc. as in No. 312. Ends.- fol. 1810
ज्ञानविमल धरी नेह etc. up. to आनंदमंदिरनाम्नि राशके चतुर्थो(s)धिकारः ४ समाप्तः as in No. 312. Then we have:-. ___संवत १८१३ वर्षे शाके १६७९ प्रवर्तमाने ज्येष्टमासे कृष्णपक्षेः पटीतिथी सोमघासरे लषितं 'घोघा बिदरे॥ सकलपु(ज्य)मट्टारकपुरंदरमट्टारकमी १०८ श्रीश्रीश्री विजयक्षमासूरिश्वरचरणसेवीः पंजीवविजयगणि तत्सीष्यविनीतविजयगणि तत्भ्राता पंहर्षविजयगाणि मुनिशांतिविजयवाचनार्थः ।। श्रीनवखंडप्रसादात् पार्श्वनाथजिनप्रसाद 'पुर्णमा'गच्छे । पंफत्तेसुंदरजी तासांष्यपंहरषसुंदर लपिकृतं ।। 'मरुधर'देसे । 'अहिलाण' • पुरवास्तव्य तथा तडवामध्ये चकाराक्षरे स्वनांम प्रतिष्टितं ॥ ..
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दुहा
जिहा लगे 'भेरु' महीधग जयवंता ससि भाण जिहां लगे ए पुस्तिका । वांचो हर्ष सुजाण १ जिहां लगि 'मेरु' अडग हे । जिहां लगि शसी हरि सूरि । त्या लगि आ पोथी सदा रहत सदा भरपूर २।।
श्लोक: भग्नपृष्टिकटिग्रीवा वक्रदृष्टिरधोमुखं कण्टेन लिखित शास्त्रं जत्नेन परिपालयेत् ३ यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा तादृशं लषितं मया यदि शुद्धमशुद्धं वा मम दोषो न दीयते ४ ॥