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The Švetāmbara Narratives Ends.- fol. 320
गच्छ ' अंचल'गुरुराजिआ श्रीसुभतिसागरसूरिशिष्योरे श्रीगजसागरसूरिवलं तशु पार्टि पुण्यरत्नसूरि दक्षो रे १२ जू० पाटप्रभाकर तेहनाविद्यमान विराजहरें । गुण(र)त्नसूरि क्षमागुणइ वली शीलविद्यागुणि गाजि रे १३ जू गजसागरसूरि तणा पंडित शिष्य प्रतापी रे ललितसागर लीला करुं जगतीइ जसु कीरति व्यापि रे १४ जू० शिष्य प्रथम तशु सोभता माणिक्यसागर मुनिराज(जो) रे मुज गुरु ते महिमानिला सीद्धांत शुसानिधिकाजोरे (१५ जू.) संवत १७ कुंघ(?) संध्या हो(यो) एकिं महाव्रतनी महावीरने जाणो 10 शुचि कार्तिक तेरसिं रेवती गुरुवार सिद्धि जोग वषाणो रे १६ (जू) त्रीजि पंडिं त्रेवीसमी कही ढाल थयो कल्याणो रे धमिलविलास धन्यासीइं पूरण चडिउं परिमाणो रे १७ जू० न्यानसागर कहिं नेहरुं श्रीसंघनि सुख श्रीकारो रे दिन दिन दोलित दीपयो सूख संपति सकल प्रकारो रे १८ जू० इति श्रीधमिल्लरास संपूर्ण त्रिषु खंडेषु मिलिया सम्यगाथा १०००६
सुभाखित २४ ॥ संवत १७१७ ना फाल्गुन मुदि १२ सोमे लिषितानीः। Reference.- For extracts and additional Mss. see Jaina Gurjara
Kavio ( Vol. II, pp. 59-61 & Vol. III, pt. 2, p. 1) 28 ).
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धर्मकथा
Dbarmakathā
1334 No. 302
1891-95. Size.-9.in. by 48 in. Éxtent.-- 7 folios 15 lines to a page ; 52 letters to a line. Description.- Country paper thin, brittle and greyish ; Deva
nāgari characters; small, legible and good hand-writing ; borders ruled in three lines in black ink ; foll. numbered as usual ; edges of all the foll. more or less worn out;
condition fair ; red chalk used ; complete so far as it goes. Age.- Pretty old. । Author.- Not known.
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