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________________ 406 faina Literature and Philosophy [298 Age,- Samvat 18os. Author.- Jinavarddhamāna, pupil of Jinaratna Súri of the Kbarabara *gaccha. Subject.- Life of Dhanna ( Dhanya), a rajarsi. 5 Begins.- fol. 1 श्रीपरमसद्गुरुभ्यो नमः ॥ दहा श्रीजिनवर ए जगतमे । करमनिकंदन धीर । वंदु त्रिकरण शुद्धम्यु । त्रिशलानंदन वीर धना ऋषि गुण गावतां । न्याई वीर प्रणमे इं। सुत बिरुदावण अवसरई । पितानाम धुरि लेहं ॥३॥ etc. Ends.- fol. 30 तास परंपर श्रीजिनचंदा नव लष वंश विणंदाजी वेछिनपूरण सुरतरुकंदा सुविहित मुनिवरइंदाजी ॥ ४॥ धs तस पट श्रीजिनरत्न विराज्ये दिनदिन अधिक दिवाजेजी जस दरिसण मिथ्यामति भाजे गुणगण करी गुरुर्बाजेजी ॥ ५॥ तस शिष्य जिनवर्धमान जगीसें आस्मे शुदि छट्टि दिवसेजी संवत सतरदाहोत्तर (१७१०) घरसे भायत' मन हरेसजी ॥ ६ ॥ ए संबंध रच्यो मतिसारे नवा मे अंमे अणुसारेजी भवियण जनणे वाचणसारे विस्तरज्यो जगजारेजी ।। ७॥ तेहवी सरस नही छे वाणी साधु तणा गुणजाणीजी आदरस्ये गुण गाहक प्राणी कीधे ___इम मनि आणीओ016 कवितारसवसिं वात जि काई सूत्थी अधिक कहाईजी कारण तिहां कणि कविचतुराई ॥ पोडि नही तिण राईजी ॥१॥ चतराईविण सरस न लागे चतर न वोचे रागेजी ते विण पहनवाले आगे तिण ए सरस मुहागजी॥१०॥ जयवंता श्रीजिन चोधीसे | चरतमान पनि बीसें जी। वांदुं त्रिकरण नामी सीसे । अविचल राज जगीसे जी । श्च ॥ १९॥ इति श्रीधनाराजर्षिसबंधरासरी संपूर्णतामगमत् । सकलभट्टारकपुरंदरभालतिलाकायमान श्रीविजयकृ(?)द्धिसूरिश्वरचिरंजिवीतुः ।। सकलभट्टारकपुरंदरदवंदारक सकल भट्टारकमुगदसमान भ श्री १०८ श्रीविजय. सौभाग्यसरिविजयराज्ये लपि शिष्य पं जिनविजयवाचनार्थ मनीमोहन
SR No.018100
Book TitleDescriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Rasikdas Kapadia
PublisherBhandarkar Oriental Research Institute
Publication Year1967
Total Pages480
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size25 MB
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