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Jaina Literature and Philosophy (s. (3) डोलामारुचोपाइ V. S. 1617. (4) तेजपालरास V. S. 1624. .(5) नवकारछन्द (6) माधवानलचोपाइ V. S. 1616. (7) श्रीपूज्यवाहणगीत
(8) स्तम्भनपार्श्वनाथस्तवन Subject.- A narration of Agadadatta in Gujarati in singable metres. Begins.- fol. 1
पास जिणेसर पय नेमी । सरसति देवि (? समरेबि)। अभयधर्म उवज्झाय गुरुपयपंकज पणमेवि । १। . वीतराग श्रीमुखि बदह । धर्मह ज्यारि प्रकार ।
दान सील तप भावना । विविध भेद विस्तार । २ | etc. __Ends.- fol. 14.
तिहांधी चवीनई उत्तम ठामि । उत्तम कुलि संयम अभिराम । घणा जीव प्रतिबोधी करी । अनुक्रमि पामेसि श(शिवपुरी ॥ १७ ॥ संवत बाण पक्ष सिणगार १६२५ । काती सदि पूनिमि गुरुवार। . भी बीरमपुर' नयर मझारि । करी चउपई मति अणुसारि । १८ । भीजिनचंद्रसार गुरुराय । गुरुश्री अभयधर्म उवज्झाय । पाचक कुशललाभ इम भणइ । मुख संपति थाइ आपणह ॥ १९ ॥
इति श्रीअगडदत्तरास संपूर्णः ॥
॥ संवत १६५३ वर्षे पौषदि भौमवासरे चतुर्थीतिथो लिषितं. P: Reference.- For an additional Ms. and extracts from it see Jaina
Gurjara Kavio ( Vol. III, Pt. I, pp. 686-687 ).
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अगडदत्तचरित्र
Agadadattacaritra
328. No..
1871-72. Size.-91 in. by 4, in. Extent.— 28 folios; 16 lines to a page ; 40 letters to a line. Description.- Country paper thin and white ; Jaina Devanagari
characters; sufficiently big, legible and fair hand-writing ; borders ruled in two lines in red ink; red chalk used; foll. numbered in the right-hand margin only; completc ; composed in Samvat 1787 in Patana; condition tolerably
good.