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107. ]
Ends. fol. 25 b
The Svetambara Narratives
कविवचने रचना कीधी सरस चोपई ए लीधी जी मिच्छा कढ अधिर्के उछे में दो (दी ) धो शुभ सोंचें जी ९४० संवत सत्तरसें इकवी (१७२१) 'बीकानेर ' सुजगीसें जी आदीसर मूलनायक सोहें भविकलोकमन मोहें जी १० . ए संबंध रच्यो मानहित कार्जे भीजिनचंदसरीराजें जी भगतां गणतां बहु सुष थाइं संणयो चित लगाई जी ११ ६० श्रीजिनभद्ररी सुबदाई सुरतरूसाषिकदाई जी
Reference.
वाचक श्रीनयरंग विष्याता बडवडा जस अवदाता जी १२ घ ० विमलविनय त शीस विराजें वावि (च) क अधिक दिवाजें जी श्रीधरममंदिर वयरागी तासु शीस बडभागी जी १३ धन० महोपाध्याय पदवी सोर्हे संघ तणां मन मोहें ज्री
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गुरु 'पणिसकल सुभ नांमें जांणीता लसवणें जी १४ ० तासु शीस श्रीजयरंग बोलें नही कोई दांननें तोलें जी दर्शन तणां फल दीसें चावां दिन दिन अधिक दिवाजें जी १५ ध० सरस ढाल न कांई पडती तीस उपरि एक चढती जी
पूरी संतां हीयडो विकस्पें धरम करम मन ऊलसें जी १६ ० इति कयवनानी चोपईः ॥ संपूणेः । संवत् १८१५ वर्षे जेष्वसूदि६दिनेः वारसोमेः ॥ ॥ कपूरविजयगणिः श्रीः तदसीष्पलाल विजयलपीकृत पालणपूरग्रामेः ॥
For a list of additional Mss. and extracts from one of the Mss. see Jaina Gurjara Kavio ( Vol. II, pp. 165-168 ). On p. 165 this work is named as
"
कयवन्ना शाहनो रास ".
कयवनाचतुष्पदी
No. 107
Kayavannācatuspadi
340. 1871-72.
Size— 93 in. by 4g in.
Description.
Extent . — 24 folios; is lines to a page ; 34 letters to a line. Country paper somewhat thick, tough and white; Jaina Devanagari characters; big, quite legible, uniform 1 This ought to be पुण्यकलश.
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