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जैन सैद्धान्तिक, विक, दार्शनिक, आचार व न्याय ग्रंथ
7
आत्म स्वरूप
वैराग्योपदेश
समयसार की टीका 53 पर टीका
पदेशिकप्रायवित 3
प्रायश्चित श्री.
शास्त्र सारांश
21
21
"
R
17
"
73
1
21
साधना विधान
8
रात्मिक उपदेश 7
10
23
3,2
3
34
आत्मा का निरूपण 10*
30
153
117
5
4
3
8
श्रावक,,
प्रायश्चित अन्तिम 4
आराधना
प्रायश्चित औपदेशिक 1
15
17*
अंत समय प्रायश्चित 7
प्रायश्चित उपदेश
अंतिम प्रायश्चित 3 साधुवाहार विधान 1
गुण स्थान वर्णन
1
6
8A
26 × 11*5 × 35
26 x 11 * 3 x 51
25 x 12 * 7 x 42
23से 24 x 12 से 13
24 X 12 17 % 49
26x11*14x 33
25×11*14 × 33
27 x 11*13 x 54
26 × 12*17 x 45
26 x 128 x 30
25 × 11 * 12 x 36
25 x 11 * 15 x 50
26 x 1109 x 27
24 x 12*11x34
26×12*11 x 35
25 x 119 18 x 50
26×12*23× 52
33 x 22 * 60 x 32
25 × 11*16 × 39
27 x 13*12 × 31
33 x 22 54 x 32
24 x 12*14 x 32
33 x 22*60 x 32
24 x 11*15x45
सं. 89 गा.
9 अंक
こ
"
"
31
21
"
27
4 प्रकाश ग्रं 6380
पहिले कम हैं सं. 43 गा.
83 TT.
""
"
4 ढालें + दोहे
11
9
25 लोक
"
31 ढाल ग्रं. 1125; | 1873पादरू मनोहरविजय 1742 की कृति गाथा 490 दो खण्ड
मुल्तान में मूलयोगोन्दुदेव के
परमात्म प्रकाशका पद्यानुवाद
11
23
सं. 36 गा.
21
"
ग्रं. 50
"
"
11
35 मा. +8 डालें
32 TT.
54 गा. जिनदत्त
गीत
36 TT.
27
अं. पहिले 3 पन्न नहीं
17वीं
19वी
1885 जालोर विवेक नि
20वीं
अ. प्रारंभ के 9 पक्ष कम 1823 कनकपुर सुमतिसागर
सं.
19वीं
1926 अजीमगंज जीवा
19वीं
1913 x विवेकविजय
1926 अजीमगंज जीवा
1873 आसोत्रा
1926 अजीमगंज जीवा
1910 जोधपुर हुकमचंद
10
अहीपुर
11
"
1843
संसारे नत्थसुहं
1573 की कृति अध्यात्मतरंगिणनाम्नी
1864 x सुखविजय
20वीं
19वीं x भानुसुन्दर
19वीं
1891 जोधपुर पं. विवेक
19वीं
11
35
प्रचारित व बीजक है 1833 की कृति
बड़तपग़च्छ भानुमेरु शिष्य
अपरनाम आत्माको आत्मीयता
किञ्चित् अर्थसह
जिनराजसूरी शिष्य