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Catalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts, Pt. XVIII (Appendix)
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पंचाचार विचार -..त प्राचरण करावे, पढे पडावं सुगम पंथ ध्यायक दरसाव । वसु वीस मूल गुण पादरै, मुक्ति पंथ साधन सदा। स्याद्वाद न्याय मंडित गिरा, मन वचन तन नमि करि मुदा ।।१॥
॥ दोहा ।।
गोतम गण की प्रादि दे, महाकवी गणराय । श्रु तस्कन्धधारी नमों, बुद्धि देहु अधिकाय ॥२॥ मंगल होने के अथि, देव धर्म गुरु पार । करौं वचनिका ग्रन्थ की. भविजन कौं सूखदाय ॥३॥
॥ छन्द छप्प ।। वदन घ्रारण द्रग रसन करण कर क्रम क्रम करिया । गज करि रस शशि बाण धरा रस इक नय धरिया। असित वर्ण तन वदन सात विष निर्गम इनि तें। अमत एक मुख स्रव जगत जनम रहि न तिनि तें। रम एक प्रभू मो उर वसो, विघ्न हरो मंगल करो। वास चरण भव भव मिलो, लीला भवसागर तरो ॥४॥
ऐसे मंगल करि अब श्रीसूक्तमुक्तावली ग्रन्थ का छन्दोबन्द वनिका प्रारम्भ करिये है। तहां प्रथम ही स्वामी सोमदेव संस्कृत ग्रन्थ की निर्विघ्न समाप्ति के अथि श्रीपार्श्वनाथ स्वामी के चरण कौं नमस्कार पूर्वक, श्रोतानि कौं आशीर्वाद पूर्वक मंगलाचरण का काव्य कहै है ।
काव्यं शार्दूल विक्रीडित छन्द ।। सिन्दूरप्रकरस्तपः करिशिरः कोडे कषायाटवीदावाचिनिचय: प्रबोधदिवसः प्रारम्भसूर्योदयः । मुक्तिश्रीकुचकुम्भकुङ्क मरस: श्रेयस्तरोऽपल्लवप्रोल्लासक्रमयोर्नखा तिभरः पार्श्वप्रभो पातु वः ॥१५॥
।। कवित्त ।।
सो....ति तन तप गाराज सीस सिन्दूरच्छवि, बोध दिवस प्रारम्भ करन कारन उदोत रवि । मंगल तरु पल्लव कषाय कंतार हुतासन,
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