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Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. (Jaipur-Collection)
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॥ दोहा ॥
वीतराग सर्वज्ञ के वंदू पद शिवकार |
जासु परम उपदेश मरिण माला त्रिभुवन सार ॥ १॥
ऐसे निर्विघ्न शास्त्र - परिसमाप्ति आदि प्रयोजन के प्रथि अपने इष्ट देवकू' नमस्कार करि उपदेशसिद्धान्तरत्नमाला ग्रन्थ की वचनिका लिखिए है । तहां इस ग्रन्थ में देव गुरु धर्म के श्रद्धान का पोषक उपदेश नीक किया है सो यह ही मोक्षमार्ग का प्रथम कारण है जातें सांचे देव गुरु धर्म की प्रतीति होनें तैं यथार्थ जीवादिकनिका श्रद्धान ज्ञान प्राचरण रूप मोक्षमार्ग की प्राप्ति होय तब जीव का कल्याण होय है । तातैं आपका कल्याणकारी ज्ञांनि इस शास्त्र का अभ्यास करणां योग्य है । गाथा
हिं देवो सुगुरु सुद्ध छम्मं च पंच गवयारो । धारण कयत्थाणं णिरंतरं वसइ हिययमि ॥१॥
[ संस्कृतच्छाया ]
अर्हत् देवः देवः सुगुरुः शुद्ध धर्मं च पञ्च नमस्कारः । धन्यानां [ कृतार्थानां ] निरन्तरं बसति हृदये ||
॥ अर्थ ॥
च्यार घाति कर्मनि का नाश करि अनन्त ज्ञानादिक कौं प्राप्त भए ऐसे अरिहंत देव, बहुरि अन्तरंग मिथ्यात्वादि अर बहिरंगवस्त्रादि परिग्रह रहित ऐसे प्रशंसा योग्य गुरु, अर हिंसादि दोष रहित निर्मल जिनभाषित धर्म, अर पंच परमेष्ठीन का वाचक पंच नमोकार मन्त्र, ये पदार्थ किया है आपका कार्य जिननें, ऐसे जे उत्तम पुरुष तिनके हृदय विषं निरन्तर वसै है ।
॥ भावार्थ ॥
ग्रहन्तादिक के निमित्त तैं मोक्षमार्ग की प्राप्ति होय है, तातै निकट भव्य नि ही के इनके स्वरूप का विचार होय है । अन्य मिथ्या दृष्टिनि कौं इनि की प्राप्ति होना दुर्लभ है ।
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