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________________ पाटण श्रीहेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिरस्थित तपगच्छ जैन ज्ञानभण्डारना हस्तलिखित ग्रन्थोन सचिपत्र [७८ पुस्तकनु नाम पत्र भाषा कर्ता *लोकसख्या रचनास. लेखनस. स्थिति लम्बाई - पहोलाई क्रमांक प्रा०गु० १५० प्रा० भद्रबाहुस्वामी २०६ प्रा०सं० टी धर्मसागरोपाध्याय २९८ प्रा०सं० वृ-नेमिचंद्रसूरि २७४ . वृ-नेमिचंद्रसूरि १६६५ मध्यम मध्यम वृ-११२९ उत्तम १०।४४।। १०।। ४।। १० x ४।।। .१०।। ४।। १०।। x ४।। " १६२४ मध्यम . (३) आदिनाथदेशनोद्धार बाला. सह १६५१४ कल्पसूत्र अपूर्ण १६५१५ कल्पसूत्र किरणावली सटीक १६५१६ उत्तराध्ययनसूत्र सटीक सुखबोधिका । १६५१७ उत्तराध्ययनसूत्र सटीक १६५१८ उत्तराध्ययनसूत्र सावचूरि पंचपाठ १६५१९ दर्शनरत्नाकर १६५२० चंद्र प्रज्ञप्तिसूत्र वार्तिक बाला० सह १६५२१ आवश्यकसूत्र बृहद्वृत्ति १६५२२ उत्तराध्ययनसूत्र सटीक १६५२३ विजयचंद्रकेवलीचरित्र १६५२४ उपदेशचिन्तामणि सावचूरि १५७० २२००० १५९८ , टी १५४४१६६७ ११२७ १०।४४ १०।। ४ ४।। १६५२५ सार्धशतकप्रकरण सटीक १६५२६ कल्पसूत्र सावचूरि पंचपाठ १६५२७ श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र अर्थदीपिकावृत्ति, १६५२८ कल्पसूत्र सावचूरि पंचपाठ' १६५२९ उपदेशचिंतामणि सटीक स्वोपज्ञ १६५३० आचारप्रदीपर १६५३१ 'कल्पसूत्र सटीक त्रिपाठ कल्पकिरणावली १६५३२ कल्पसूत्र सटीक त्रिपाठ कल्पसु बोधिका१२ १६५३३ उत्तराध्ययनसूत्र३ १६५३४ जीवविचारप्रकरण सावचूरि पंचपाठ १६५३५ साधुप्रतिक्रमणसूत्र सस्तबक १६५३६ संग्रहणीयप्रकरण सटिप्पनक ४८६ सं० सिद्धांतसार तपागच्छीय १०० ४०२ . हरिभद्रसूरि २८७ प्रा०सं० टी कमलसंयमोपाध्याय ६९ प्रा० चंद्रप्रभसूरि ९३ स. मू. जयशेखरसूरि अव० महीमश्री साध्वी ५९ . मू० जिनवल्लभ टी धनेश्वरसूरि ७५ प्रा०सं० मू भद्रबाहुस्वामी २१५ सं. रत्नशेखरसूरि ५० प्रा०सं० मू भद्रबाहुस्वामी २५६ ... जयशेखरसूरि स्वोपज्ञ ९० सं० रत्नशेखरसूरि १८७ प्रा०सं० टी धर्मसागरोपाध्याय २३५.. टी. विनयविजयोपाध्याय ५९ प्रा० २ प्रा०स० मू० शांतिसूरी १३ प्राणु स्त० पार्श्वचद्र १३ प्रा०स० मू० श्रीचंद्रसूरि ४३०५ अव १४७७ टी. ११७१ १०॥४४॥ ६६४४ १४९६ १६५८ मध्यम १०४ ४।। ३६२२ | (9c4 १०॥४४॥ १२०९३ १४३६ उत्तम ४०६० १५१६ १०x४।। जीर्णप्राय १० x ४|| उत्तम ९||| x ४|| १५८४ मध्यम १०x४।। १०x४।। ३०५ १६७६ २०९५ १. पत्र ३२ मु डबल छे. चोटेली. २. पत्र ८३ म तथा १२९ मुं डबल छे, ३ पत्र ६१ तथा २४५ मु डबल छे, पत्र ७६-७७ भेगा छे, ४. पत्र ५७ म डबल छे. ५ पत्र ४८४ में डबल छे, ६, एक खूणेथी उंदरे खाली छे. ७. प्रथम पत्रमा भगवान सुंदर चित्र छे. ८. प्रति सारी. १. पत्र २०२ मुनथी. १०. पत्र ४६ मुं डबल छे. ११. पत्र २७ मुं डबल Jan Education international For Private &Personal use Only www.jainelibrary.org
SR No.018046
Book TitleCatalogue of Manuscripts of Patana Jain Bhandara 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Jambuvijay
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size13 MB
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