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________________ [१९] लोकसंख्या रचनास. लेखनस. स्थिति लम्बाई-पहोलाई क्रमांक पुस्तक नाम पत्र भाषा कर्ता ११२० १५२०४ स्थानाङ्गसूत्र सटीक पञ्चपाठ' १०५ प्रा.सं. मू.५.४४२ १५२०५ भगवतीसूत्र ३६९ प्रा. सुधर्मास्वामि १६,००० १५२०६ भगवतीसूत्र २८६ सुधर्मास्वामि १६,००० १५२०७ भगवतीसूत्र वृत्ति सं. वृ अभयदेवसूरि १८,६१६ १५२०८ समवायाङ्गसूत्र सुधर्मास्वामि १६४७ १५२०९ समवायाङ्गसूत्र सुधर्मास्वामि १६३७ १५२१० समवायाङ्गसूत्र सुधर्मास्वामि १६३७ १५२११ समवायाङ्गसूत्र वृत्ति अभयदेवसूरि ३,९७५ १५२१२ समवायाङ्गसूत्र वृत्ति , अभयदेवसूरि ३,७७५ १५२१३ भगवतीसूत्र २९० प्रा. सुधर्मास्वामि १५,७५२ १५२१४ राजप्रश्नीयोपाङ्गसूत्र सस्तबक १३८ प्रा.गु स्त. राजचन्द्रसूरि ५,५०१ १५२१५ कल्पान्तर्वाच्य १५२१६ कल्पान्तर्वाच्य अपूर्ण १५२१७ पुराणश्लोकसङ्ग्रह सस्तबक ३३ सं.गु. १५२१८' त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र सप्तमपर्व रामायण ७१ स. हेमचन्द्राचार्य ३,८४४ १५२१९ राजप्रश्नीयोपाङ्गसूत्र सटीक पञ्चपाठ ११० प्रा.स. टी. मलयगिरिसूरि ५.८७० १५२२० कल्पसूत्र सस्तबक ६२ प्रा.गु. ३२०० १५२२१ कल्पसूत्र सावचूरि पशपाठ ५१ प्रा.सं. मू १,२१६ १५२२२ श्राद्धदिनकृत्यप्रकरण सस्तबक ५४ प्रा.गु मू. देवेन्द्रसूरि १५२२३ अध्यात्मकल्पद्रुम सटीक त्रिपाठ ७५ स. मू मुनिसुन्दरसूरि, टी. धनविजयगणि १५२२४ अध्यात्मकल्पद्रुम सटीक ७५ , मू. मुनिसुन्दरसूरि, टी. धनविजयगणि १५२२५ श्राद्धदिनकृत्यप्रकरण ९ प्रा. देवेन्द्रसूरि का. ३३९ १५२२६ श्राद्धदिनकृत्यप्रकरण सस्तबक ४५ प्रा.गु मू. देवेन्द्रसूरि स्त धर्मचन्द्र १५२२७ सङ्ग्रहणीप्रकरण सटीक ७३ प्रा.स. मू श्रीचन्द्रसूरि, टी. देवभद्रसूरि ३,५०० १५२२८ सग्रहणीप्रकरण सटीक त्रिपाठ ३६ , मू श्रीचन्द्रसूरि, टी. देवभद्रसूरि ३,५०० १५२२९ लघुक्षेत्रसमासप्रकरण ७ प्रा. रत्नशेखरसूरि गा, २७८ १५२३० सुभाषित १६ गु. रत्नशेखरसूरि टी.११२० १६१५ उत्तम १०।। ४। १७मो , १०। ४।। १७मो .. १०x४|| ११२८ १६२१ ।। १०11 x ४।। १५५९ जीर्ण १०।४४| १६४७ उत्तम १० x ४॥ १७मो जीर्णप्राय ९|| ४४|| ११२० उत्तम १०x४।। १०x४।। १०.४४।। १८मो मध्यम १०।।x ४|| १५७४ उत्तम १०।। ४ ४।। १६मो मध्यम १०।४४।। १७६२ उत्तम १० x ४॥ १५२४ १०॥४४॥ १७मो १०11X४।। १६२७ मध्यम १०1४४|| १६मो उत्तम १०।। ४।। १७मो १०१X४|| १०।। ४।। १०.४४|| १५९९ , १०।। ४ ४।। १७७८ १०।। ४।। १६५५ उत्तम १०।४४|| १७मो .. १०। ४।। १०1४४| १०।। ४।। १. पत्र २२-२३ भेगा छे. २. पत्र २६५९ नथी, २३३मु अने २६६मु डबत छे तथा २५४-२५५ भेगां छे, ३. चित्रपृष्ठिका सह. ४. प्रति एक बाजु थी उदरे करडेली छे पत्र ३४मुं अने २५३९ डबल छे तथा ४२-४३ भेगा छे. ५. प्रति शोधेली छे.. Jan Education international For Private &Personal use Only www.jainelibrary.pro
SR No.018046
Book TitleCatalogue of Manuscripts of Patana Jain Bhandara 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Jambuvijay
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size13 MB
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