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क्रमाक
पुस्तकनु नाम
पत्र
भाषा
कर्ता
लोकसख्या रचनास. लेखनस, स्थिति लम्बाई-पहोळा
१९मो उत्तम १७५९ १६मो मध्यम १६७५ उत्तम
गा.९९
९६ गा.२९९ गा. ६५ गा. ६६ गा, ६६
८।। ४।। ८.४४| ७.४४
७|| x ४।। ७ix ४||
१६४७
७४४||
७ x ४॥ ५।।। ४४ ६४३|| १३।।। ५।। १३।। ४ ।। १३।। ४५।
११२८
१४८३२ उपधानविधि १४८३३ स्थूलभद्रनवरसो
उदयरत्न १४८३४ चिहुंगतिचोपाई :
वस्तीग १४८३५ प्रसन्नचन्द्रराजर्षिरास
राजसागर १४८३६ सत्तरिसयजिनस्तवन
विशालसुन्दरसूरिशिष्य १४८३७ १. शत्रुञ्जयस्तवन
१. कुशलहर्ष २. नेमिनाथस्तवन
२. कुशलहर्ष ३. शत्रुञ्जयस्तवन
३. सहजसुन्दर १४८३८ गजसुकुमालरास
शुभवर्धनशिष्य १४८३९ अशनादिस्वाध्याय
वीरविमल १४८४० षडारकस्तवन
देवीदास १४८४१ भगवतीसूत्र
१६८ प्रा. सुधर्मास्वामि १४८४२ भगवतीसूत्र वृत्ति
२०० सं. अभयदेवसूरि १४८४३ विशेषावश्यकमहाभाष्य वृत्ति सह२३९६ प्रा.सं तू मलधारी हेमचन्द्रसूरि १४८४४ प्रश्नव्याकरणाङ्गसूत्रवृत्ति
८७ स. अभयदेवसूरि १४८४५ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिचूर्णि १४८४६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिचूर्णिसूत्र १४८४७ स्थानाङ्गसूत्र १४८४८ प्रश्नव्याकरणाङ्गसूत्र १४८४९ निरयावलिकासूत्र १४८५० समयसारनाटक टिप्पण सह
सं दिगम्बर अमृतचन्द्रसूरि १४८५१ आचाराङ्गसूत्रचूर्णि
१२८ प्रा. १४८५२ उत्तराध्ययनसूत्रबृहवृत्ति- पाइयटीका
शान्त्याचार्य १४८५३ निशीथसूत्रचूर्णि
प्रा जिनदासगणि महत्तर १४८५४ जीवाभिगमसूत्रवृनि
२३८ स मलयगिरिसूरि १४८५५ अनुयोगद्वारसूत्रचूर्णि
२७ का जिनदासगणि महत्तर १४८५६ ओघनियुक्ति सटीक
१०३ प्रा स. मू. भद्रबाहु स्वामि
टी द्रोणाचार्य
गा. ९८ गा. १८ गा, ५४ १५.६७५ १८,६१६ २८,०००
४,१३० १.८६० ४,४५४ ३.७७० १,३३९ १.१०९
मध्यम उत्तम
१५०२
१६मो
..
१५५७१ १५७२ १५८०
१३|| ४५ १३।। ५। १३.४५ १३।। ४५० १३|| x ५। १३. x ५
जीर्ण
सं
८.३०० १८,००० २८,००० १४,०००
१५३८
१५६३ उत्तम १२।।। ४५ १५७२
१३। x ५। १५८५ मध्यम १३||1४५| १६मो उत्तम १३। ।
८,२२५
१. पत्र जुनी २. पत्र ३७८.पुडबल छ, प्रथम पत्रमा चिछ ३. प्रथम पत्रमा पांच आश्रव ने पांच सवाने सुचवत सुन्दर चित्र लाग ४ प १०७-१०८ भेगा छ अने २१४मुटबल ५. पत्र १७३ थी १११ सुचीना पत्राको लेखकना प्रमाद थी छुटी गया छ, पण सम्बन्ध तूट तो नथी, ६. प्रथम पत्रमा समवसरणन चित्र के
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