________________
VIII ]
Works and their Sections
243
प्रवचनमातृ (s. XXIV of Uttarajjhayana ) III-30, 20 प्रवचनसारोद्धार IV-78, I-2; 241, 32 प्रवचनसारोद्धारवृत्ति IV-108, 23 प्रव्रज्याविषय (s. Vof Pravrajavidhānavivrti ) IV, 209,6 प्रव्रज्यास्वरूप ( s. IV of Pravrajyavidhānavivrti ) IV-209, 3
व
बम्भगृत्ति ( s. XVI of Uttarajjhayana ) III-57, 28 बहुश्रुत (s. XI of Uttarajjhayana ) III-30, 25 बहुसुअवु(पु)ज्ज III-67,6 बहुस्सुय III-57, 27 बार्हस्पती (स्मृति) II-166, 18 बुद्धवयण II-292, 22 बृहत्कल्पवृत्ति III-126,1 बृहद्वात्ति ( of दसधेयालिय ) III-112, 23 बोधि रत्न)दुर्लभता ( s. II of Pravrajyavidhānavivrti ) IV-208, 29 ब्रह्मचर्य ( s. XVI of Uttarajjhayana ) III-30, 30
भक्तपरिज्ञा I-276, 17; 278, 27. See भत्तपरिन्नन्ना) (p. 243 ). भक्तामर I-337, 31 भगवई I-104, 26; 105, 20; 109, I. See पण्णत्ति (p. 241 ). भगवती I-100, 1; 101, 5; 103, 21; 109, 3; II-142, 30; IV- 158, 14 भत्तपरिन्न न्ना) IV-222, 21-22. See भक्तपरिज्ञा (p. 213). भागवत 11-131, 30 भागवय II- 292, 23 भारह II-292, 20 भाष्य ( of वन्दिनुसुत्त ) III-295, 18 भाष्य II-100, 8 भीमासुरक्ख II-292, 20
मण्डलपवेस II-293, 2 मरणविभत्ति II-293, 3-4 मरणसमाहि IV-222, 23 महलयाविमाणपविभत्ति III-SI3, IO
महल्लियाविमाणपविभात्ति II-38, 20-21; 293, 10-I ( महाकप्पसुअ I-321, 9 र महाकप्पा(प्प)मुय II-270, 26-27; 292, 30
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org