________________
1143]
Ends
fol. 38a
सच्चरित्रमिदं मातयंतीद्रा ज्ञानिनो निहतदोषसमग्राः ॥ शोधयंतु ननु शास्त्रधरेण सर्वकीर्तिगणिना कृतमंत्र ॥ ८७ ॥
येन प्रकाशितो धर्मविजगरथो सुखाकरः
वर्त्ततेद्यापि लोकेस्मिन् संश्चतुर्विधैर्महान् (... Torn ) ।। २ ।।
नाभेयाद्या etc. upto विज्ञेया लेखकैः सर्वे द्वादश शतप्रभा ॥ ९३ ॥ followed by इति सुकुमालचरित्र समाप्तम् || ग्रंथाग्रंथ श्लोक १२० संवत् १८०२ मिती असाढ वदि १९ दिने लिषतं यती नैंणसागरः श्री' सवाईजयपुर 'नमध्ये || शुभं भूयात् श्रीरस्तु ॥
N. B. - For further particulars see the preceding two entries.
-
The Digambara Works
सुखसम्पत्तिकथा ( सुहसम्पत्तिकहा )
No. 1143
Extent - fol. 90 to fol. 106.
Description Complete. For additional information see Daśalakṣapikavidbānakatha supra.
-
Author Vimalakirti disciple of Rsi Hema.
Subject
Begins
- fol. 96
Jain Education International
Prowess of devotion to a Tirthamkara.
Ends - fol. 100
Sukhasampattikathā ( Suhasampattikahā )
विवि तित्थंकर सिद्धिसुहंकर सुहसंपय विहिमणहर । गुणगणहर | विस्तंवर । दिंतु वो हि महु सुंदर ॥ छ ॥ etc.
-34 [J. L. P.]
265
लीलाइसोरमइणा इक्कवर मुत्ति । रिसहेम विणवद्द मुणि विमल - कित्तित्ति || लहु देहि ईस तमम । सिद्धिसंपत्ति ॥ छन्ना
1074 (c)
1884-87
जो पढइ सुणइ मणिभावइ जिणु आराहइ सुहसंपय सो गरु लहइ । विपज्जइ भवदुहु षिज्जइ सिद्धिविलासिणि सो रमइ ॥ इति स ( सु ) ख समाप्तं ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org