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Jaina Literature and Philosophy सिधिपुरीसिधनको थान ॥ सिधपुरी आनंदनिधान ।
प्रगट जाति त्रिभुवनमैं आहि ॥ भलषदेवकौलषैनताहि २ ॥ Ends - fol. 1310
उग्रं गोपरिरंचदुर्गमगढ़ रत्नं वरं भूक्षतं ॥ जंधीरं ऋतिमंबरं मदगलं पाषानरावतं । तनमधे श्रीनामसिंहधियते भूलोकबरबंदिते ।। तनराज्यं सुरनाथतुल्यगदितं तत् केन संघर्तते ? ॥ १०० ।। सुजसलहरजुत कुसलो नामेन चंदनयं ॥ तत्पुत्रो गुरुरांमदास विपुलं ॥ भुक्तं त भोग्यं सदा ॥ तत् श्रनुकलदीपकस्तु प्रगटनामासकरणे सुभं । तत्पुत्रं परिमल्ल धर्मसदनं ग्रंथ इदं क्रीयते ॥ १०१॥ दोहा ॥ चौपई ॥ गोवरि गिर गढ उतम थान ।। सरबीर तहां राजामांन ।। ता मानें चांदन चौधरी ।। कीरति सब जगमैं बिसतरी ॥ २ ॥ जातिव रहिया गुन गंभीर ॥ अति प्रतापकुल राजै धीर ॥ ता सुत रामदास परवीन ॥ नंदन आसकरन सुभदीन ॥३॥ ता सुतकुलमंडनपरिमल्ल ॥ बसै ‘भागरे 'मै अरिसल्ल ॥ ता सम बुधिहीनं नहीं आन ॥ तिन सुनियौं श्रीपालपुरांन ॥ १०४ ॥ ताकी छाय कछू मति भई । तब श्रीपालकथा वर नई ॥ कीनी चौपई बंधनषांन ॥ नवरसमिश्रत गुनह निधान ॥ ५॥ होय असुध जहां पदहांनि ॥ फेरिस वारो कवियन जान बार वार जंपै कर जोरि । बुधजन मोहि देह मति षोरि ॥६॥
इति श्रीश्रीपालचरित्रजी संपूर्णम् मीति भादवासुदी २ संमत् १८८५ का दस कपनां लालसाहकी दिव । ग्रीमधलिषी लिषाई गोगराजजी गोदीका ॥ श्री श्री श्री
श्रुतस्कन्धविधानकथा
Śrutaskandhavidhānakathā No. 1119
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1875-76 Extent - fol. 29b to fol. 30b. Description ---Incomplete as it ends abruptly. For other details seo
Candanasastika. ..
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