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________________ 144 Ends - fol. 104a Jaina Literature and Philosophy मोहमहातमदलनदिन || तपलछमीभरतर ॥ ते पारस परमेसरु | होउ सुमति दातार ॥ १ ॥ पुराण No. 1027 वामानंद कलपतरु || जपौ जगतहितकार || जिन जाकी आस कर || जाचे सिवफलसार ॥ २ ॥ etc. Size - नमो देव अरहंत सकल तत्वारथभासी । नमो सिद्धभगवान ग्यानमूरति अविनासी ॥ नमो साधनिरगंथ दुविधि परिगहपरत्यागी ॥ जथाजोत जिंनलिंगधार । वनवसे विरागी । बंदौ जिनेसभाषित धरम || देय सर्वसुषसंपदा ॥ ए सार चरत तिहु लोकमै ॥ करौ छेम मंगल सदा ॥ ३२ ॥ Jain Education International दोहा ॥ संवत सत्र से समै । और निवासीलीया ॥ सुदि असा तिथ पंचमी । ग्रंथ समापित कीय ॥ ३३ ॥ इति श्रीपार्श्वनाथपुराणभाषायां भगवन्निर्वाणकचरनो नाम नवमोधिकार ॥ इति श्रीपार्श्वनाथपुराणकी भाषा संपूर्ण समाप्ता ॥ यादृशं पुस्तकं दृष्टा । तादृशं लिखितं मया ॥ यदि शुद्ध शुद्धं वा मम दोषो न दीयते ॥ १ ॥ पुण्यचन्द्रोदयमुनिसुव्रत भग्नपृष्टिकटिग्रीवा । तप्तनेत्र अधोमुखः ॥ कष्टन लिषिते ग्रंथ । यन्तेन परिपालते ॥ २ ॥ ग्रंथसंख्या २३५१ || लीबायतं धर्ममुर्त्ति दयापालक जैनवंसोद्भव साहजी श्री तेजपालजी तत्पुत्र चरंजीव नाथुरामजी तत्पुत्र चरंजीनंदलापठनार्थम् लिषतं जोसी वषतराम दुरगापुरामध्ये राज्य श्रीमहाराजाधिराज प्रतास्यंघजीराज्ये पवासजी श्रीरोडामलजीराज्ये संवत १८४३ वरषे असाढ सुदतिथौ चवदि सोमवासरे समाप्ति || लेषकपाठकयो मंगलं ब्रूयात् (1027 118 in. by 5 in. Extent – 167 folios ; 9 lines to a page ; 35 letters to a line. Punyacandrodayamunisuvrata For Private & Personal Use Only purāna 964 1892-95 www.jainelibrary.org
SR No.018044
Book TitleDescriptive Catalogue of Govt Collections of Manuscripts Part 4 Digambara Works
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal R Kapadia
PublisherBhandarkar Oriental Research Institute
Publication Year1988
Total Pages328
LanguageEnglish, Sanskrit
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size11 MB
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