________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatith.org
Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir
आदि वाक्य की जगह (-) दिया गया है. यही बात अंतिमवाक्य के लिए भी लागू होती है. किसी कारण से अक्षर पढ़े
नहीं जा रहे हो, तो ऐसे में (अपठनीय) दिया गया है. ९. कृति परिमाण : कृति के प्रत में उपलब्ध अध्याय-ढाल-खंड आदि, गाथा/श्लोक आदि तथा ग्रंथाग्र की यथायोग्य सूचना
यहाँ दी गई है. कई बार एक ही कृति हेतु विविध प्रतों के परिमाण में, अनेक कारणों से न्यूनाधिकता मिलती है, जो कि प्रचलित कृति परिमाण से भिन्न भी हुआ करती है. यदि यह भेद ज्यादा बड़ा हो, तो विभिन्न परिमाणों वाली एकाधिक
समान कृतियों की स्वतंत्र प्रविष्टि दी गई है. यथा - बृहत् व लघु ऋषिमंडल स्तोत्र. १०. कृति पूर्णता : कृति की प्रतगत पूर्णता को यहाँ दिया गया है. इन पूर्णताओं को निम्नोक्त प्रकार से वर्गीकृत कर के
दिया गया है. १. संपूर्ण : पूरी तरह से संपूर्ण कृतिमाहिती, २. पूर्ण : मात्र एक देश से अत्यल्प, अपूर्ण कृतिमाहिती को अपूर्ण न कह कर 'पूर्ण' संज्ञा दी गई है, ३. प्रतिपूर्ण : प्रतिलेखक द्वारा कृति खास अध्याय आदि अंश मात्र ही लिखा गया हो और उतना संपूर्ण हो, ४. अपूर्ण : कृति के आदि/अंत या एवं मध्य का एक बड़ा अंश अनुपलब्ध हो. ५. त्रुटक : बीच-बीच के अनेक पत्र अनुपलब्ध हों. ६. प्रतिअपूर्ण : प्रतिलेखक ने कृति का कोई खास अध्याय आदि अंश मात्र ही लिखा हो और उसमें भी पत्र अनुपलब्ध हो. प्रत व पेटांक की पूर्णता (जिनका आधार मात्र पृष्ठों की उपलब्धि/अनुपलब्धि पर होता है) से कृति की यह पूर्णता भिन्न हो सकती है. यथा - प्रत में संपूर्ण दिया गया हो लेकिन कृति का एक अंश ही प्रतिलेखक को लिखना इष्ट होने की वजह से मात्र उतना ही अंश लिखा हो तो कृति स्तर पर 'प्रतिपूर्ण' का उल्लेख मिलेगा. क्वचित् प्रत/पेटाकृति स्तर पर पूर्णता में 'संपूर्ण' न हो, तो भी कृति स्तर पर यह 'संपूर्ण' हो सकती है. यथा - अंत के ही एक-दो पृष्ठ न हो, ऐसी प्रत में मूल संपूर्ण हो सकता है एवं टीका का अंत भाग न होने की वजह से टीका 'संपूर्ण' नहीं होगी. इस तरह कृति स्तर पर भी पूर्णता की अपनी स्वतंत्र उपयोगिता है. खंड ६ से प्रत, पेटाकृति व कृतिमाहिती स्तर पर पूर्णता संबंधी सूचनाओं को इस तरह और स्पष्टरूप देते हुए शामिल किया गया है. कृतिगत प्रतिलेखन पुष्पिका इसके बाद कृति से जुड़ी प्रतगत प्रतिलेखन पुष्पिका की निम्नोक्त सूचनाएँ ( ) ब्रेकेट में दी गई है. कृपया यहाँ दिए गए वर्ष व स्थल आदि को कृति की रचना प्रशस्ति मानने की भूल न करें. रचना प्रशस्ति से इनकी भिन्नता बताने
के लिए ही इन्हें ब्रेकेट में दिया गया है. ११. कृति प्रतिलेखन संवत, १२. कृति पूर्णता विशेष (पू.वि.), प्रत/पेटांक के साथ एकाधिक कृतियाँ संलग्न हो व उनकी पूर्णता परस्पर भिन्न हो, तो
उनमें प्रत्येक में, कितने अंश की पूर्णता है, या कृति प्रतिलेखक द्वारा ही अपूर्ण इत्यादि सूचना यहाँ दी गई है. देखें
- 'प्रत पूर्णता विशेष' एवं 'पेटाकृति पूर्णता विशेष.' १३. कृति प्रतिलेखन स्थल (ले.स्थल.), १४. कृति प्रतिलेखक आदि, १५. कृति प्रतिलेखन पुष्पिका उपलब्धि संकेत
(प्र.ले.पु.), १६. कृति प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोक (प्र.पु.श्लो.), १७. कृति प्रतिलेखन विशेष (वि.) - कृति स्तरगत प्रतिलेखन संबंधी इतनी सूचनाएँ प्रत व पेटाकृति स्तर की ही तरह तत्
तत् कृति हेतु अलग से उपलब्ध होने पर यहाँ पर, दी गई हैं. कई बार ऐसा पाया गया है कि मूल व टबार्थ दोनों की प्रतिलेखन पुष्पिका भिन्न होती है. खास कर ऐसे संयोगों में ही यहाँ पर ये सूचनाएँ मिलेंगी.
For Private And Personal Use Only