________________
विभाग में ग्रंथकर्ता के नाम के आधार पर ग्रंथ-शोधन किया जा सकता है। द्वितीय परिशिष्ट रचनावर्षक मानुक्रमणिका में ग्रंथरचना संवत के आधार पर तालिका बनाई गई है। इस परिशिष्ट के आधार पर प्राचीन और अर्वाचीन ग्रंथ रचना का विचार आता है। तृतीय परिशिष्ट में ग्रंथ के लेखनवर्ष की तालिका प्रस्तुत की गई है। प्रस्तुत तालिका से ग्रंथ के लेखन वर्ष का ज्ञान प्राप्त होता है। चतुर्थ परिशिष्ट में रचना स्थल के नामों की अनुक्रमणिका अकारादि क्रम से प्रस्तुत की गई है । परिशिष्ट पांच में विषयों के आधार पर अकारादि कम से सूचि प्रस्तुत कि गई है। इसके आधार पर संशोधकों को विभिन्न विषयों में उपलब्ध कृतियों की जानकारी प्राप्त हो सकती है । परिशिष्ट ६ : भाषानुक्रमणिका में विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध ग्रंथों की सूचि प्रस्तुत की गई है । इस प्रकार ६ परिशिष्टों से युक्त प्रस्तुत सूचिपत्र संशोधकों संपादकों एवं जिज्ञासुओं के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा ऐसा हमारा विश्वास है ।
प्रस्तुत सूचिपत्र तैयार करने में हमारे संस्थान के वयोवृद्ध विख्यात लिपिज्ञ श्री लक्ष्मणभाई भोजक जी ने अपार परिश्रम किया है। प्रस्तुत ग्रंथ संस्थान में उनकी पांच दशक से भी अधिक सेवा का परिपाक है। साथ ही संस्थान के हस्तप्रत विभाग के कर्मचारियों श्री अमृतभाई पटेल, श्रीमती प्रीतिवहन पंचोली एवं अन्य सहयोगियों का भी सहयोग प्राप्त हुआ । इन सबकी सेवाओं के लिए हम उनके अत्यंत आभारी है ।
प्रस्तुत ग्रंथ प्रकाशित करने में हमें केन्द्र सरकार के नेशनल आर्काइव्ज़ विभाग का आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ है अतः हम उनके भी अत्यन्त आभारी है ।
ग्रंथ प्रकाशन के कार्य में सर्वश्री केयूरभाई भट्ट, नारणभाई पटेल और जगदीशभाई पटेल आदि का भी सहयोग प्राप्त हुआ है । हम उनके भी आभारी है ।
२००३, अहमदाबाद
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
जितेन्द्र बी. शाह नियामक
www.jainelibrary.org