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________________ 134 Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur (Jodhpur-Collection Colophon: विप्राणां यज्ञकालेषु जप-होमार्चनेषु (च) ॥१॥ ॐ इषेत्त्वकाव्वसोः पवित्र तिम्रो ग्ने व्रतपते सप्त पोस्थो द्वे शर्मा तिम्रो धृष्टिरसि शर्मासि द्वि को देवस्य त्वा पंच प्रत्युष्ट रक्षस्तिस्त्रो दर्श त्रि शत् ॥१०॥३१॥१॥ दणाघ्याये समाख्याता अनुवाकाः सर्वसंख्यया ।। शतं दशानुवाकाश्च नव चैव प्रकीर्तिताः ॥१॥ सप्तषष्टिश्चितो ज्ञेया सोत्रे द्वाविंशतिस्तथा ॥ अश्व एकोनपचाशत्पंचत्त्रिशत्खले स्मृताः ।।२।। शुक्रियेषु तु विज्ञेया एकादशमनीषिभिः ।। एकोनविंशत्यनुवाकसंख्या ॥ युजानः प्रथममित्यारभ्य त्वं यमेष्टेर सप्तषष्टिचितौ विनियोगः ॥ स्वाहेत्यारभ्य त्वामद्य कृष आर्षयेत्यन्तं सोत्राम द्वाविंशत्यनुवाकः ।। तेजोसीत्यारभ्य अग्ने त्वन्नो अन्तम इत्यन्तं अश्वमेधे ए नपंचदशानुवाकः ॥ अग्निश्च त्यारभ्य अपेत इत्यध्यायान्तं कण्डिका समाप्तिपर पञ्चत्रिंशदनुवाकः ॥ खिलः ।। ऋचं वाचमित्यारभ्य खं ब्रह्मत्यन्तमेकादश वाक शुक्रियः ।। अल्पाक्षरमसंदिग्धं सारवद्विश्वतो मुखम् ॥ प्रस्तोभमनवद्य च सूत्रं सूत्रविदो विदुः ॥१॥ इति त्रिश्लोकार्यः ।। एकीकृत्य समाख्यातं त्रिशतं त्र्यधिक मतम् ॥३॥ इति श्री काव्यायनोक्ता अनुवाकाः समाप्ताः ॥ शुभं भवतु ॥ अत्र दि चारः द्यौः शान्तिरिति पठेत् ।। संवत् १९२८ ना महा शु. १० सोमे संपूरण ।। श्री नवानगर वास्तव्य नगरज्ञ ज्ञाती पाठ (क) श्री ५ नाका सुतजी श्रुतहरजी श्रुतजी भाई श्रु त भवानीदत्त सुत पुजारिणा लिखितम् ॥ कल्य मस्तु ।। शुभं भवतु ॥ जांम श्री ७ वीभाजी रणमलजी नां राज्य लिखितम् ।। इस प्रति के साथ ३४ पत्रात्मक पञ्चाध्यायी सानुक्रमरिण भी है।। संवत् १६२८ माघ शुक्ला ७ गुरुवार का प्रतिलिपि काल दिया गया प्रतिलिपिकार का वर्णन इस प्रकार है जाम श्री ७ वीभाजी रणमलजी विजय राज्य आभ्यंतर नागर न पाठक श्री ५ नाका सुत हरजी सुतजी भाई सुत भवानीदास सुत पुन (पुजारिणा) लिखितम् ।। Post-Colophonic: Note : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018018
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherRajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages242
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size10 MB
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