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________________ Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts Pt. IV (Appendix) [383 Opening 1299 विज्ञप्तिपत्रम् ॥ श्रीः ॥ ॥ श्रीसिद्धचक्राय नमः ॥ अर्हतो भगवंत इद्रमहिताः सिद्धाश्च सिद्धिस्थिता आचार्या जिनशासनोन्नतिकराः पूज्या उपाध्यायकाः ।। श्री सिदधान्तोषु पाठका मुनिवरामंत्रत्रयाराधका पञ्चैते परमेष्ठिनः प्रतिदिन कुर्वन्तु वो मङ्गलम् ॥१।। शार्दूल विक्रीडितछन्दः ॥ सद्भक्त्या नतमौलिनिर्जरवर. भ्राजिष्णुमौलिप्रभा सम्मिश्रारुणदीप्तिशोभिचरणाम्भोजद्वयः सर्वदा ।। सवज्ञ पुरुषोत्तमः सुचरितो धर्माथिनां प्राणिनां भूयाद्भ रिविभूतये मुनिपतिः श्रीनाभिस्नुजिनः ॥१॥ द्रुतविलम्बित छन्दः ।। विपुल निर्मलकीर्तिभरान्वितो जयति निर्जरनाथनमस्कृतः ॥ लघुविनिज्जितमोहधराधिपो जगति यः प्रभुः शान्तिजिनाधिपः ॥२॥ Closing & Colophon परमतपस्वी परमपवित्र परमपंडित परमहितकारक महामुनीश्वर महासौभाग्यवंत दिन २ अधिकप्रताप परमउपकारी परमगुरू परमधुरन्धर वाचाऽविचल जङ्गमयुगप्रधान भट्टारक प्रभुभट्टारक श्री श्री श्री १००८ श्री श्री श्री श्री जिनसौभाग्यसूरि जिनसूरीश्वरान् सकलपाठक वाचकगणि मुनिराज हंस संसेव्यमान चरणकमलान् श्री बीकानेरतः श्रीमबृहत्खरतरगणीयः समस्तश्रीसंघः शिरोनांम २ वंदते सहर्ष सविनयं त्रिसन्ध्यं पत्रद्वारा विज्ञप्तिकां विज्ञापयति च भावुकभरमत्र श्रीमजिनधर्मप्रसृतेः तत्रापि श्री पूज्यानां सदायुष्यं समीहामहे अपरंच श्री जितां. सुवर्णवर्णाकीर्ण कृपापा पुरागतं तन्मध्ये लिखितंवयं मकसूदावादनगरं संप्राप्ताः Opening 1327 समरसमाला सटीका नत्वा श्री पार्वतीर्थेशं गुरोश्च पदपङ्कजम् । वक्ष्ये शांतरसाख्याया मालाया मुग्धबोधनम् ॥१॥ परमिन्न पासजिणेसं थंभणपुर सोहग महामहिम बुच्छ समर समाल समस्समाल बणा रहियं ॥१॥ पार्श्वनाथ नइ प्रणमीजै श्रीपार्श्वनाथ (थ) भरणपुर षभाइ तनइ विषइ सोभाकरणहार मोटी छइजे हनी महिमा। वुछ कहतां कहिसु । समरसमाला इसइउ नामिइ उपदेस कोसते समरसमाला कहवी छइ । समः समर कहतां। संग्राम तेहनीजे समालम्बना आश्रय तिणइ करी नइ रहित जिहां किर्णि संग्रामा गणनी वात नथी ।।१।। जिको पूछणहार जिको वर्ण उकार प्रादि देई नई हकार पर्यन्त माडइ पाटलइ लिषइ यथा कमइ कहता जेतमउजिको अक्षर हुइ तमोजै पद तेहन पडूतर देवाधकी कहणहारपिरण क्रयी सर हुइ। भावार्थ ।ए। कोईक पहिल उक कउ माडइ तउ पहिलउ जिको ककानउ पदल इते कहीयइ । इमच्यारि Closing Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018016
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherRajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages506
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size21 MB
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