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जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथभंडार - जैसलमेर दुर्ग ग्रंथनुं नाम
स्थितिकर्ता भाषा संवत् । पत्र संख्या झेरोक्ष | आचारांगसूत्र अतिजर्ण सुधर्मास्वामी. ............प्रा..
...............५-२७ आधारांगसूत्रनियुक्ति ............... अतिजीर्ण भद्रबाहुस्वामी. ....... प्रा.
.........४(२८-३१) आचारांगसूत्रवृत्ति प्रथम खंड ........... जीर्णप्राया शीलांकाचार्य .......
J.. गु.७७२-२.१४८८..... १०३(३२-१३४) आचारांगसूत्रवृत्ति द्वितीय खंड ....... मध्यम ... शीलांकाचार्य .......... गु.७७२-२.१४८८..... २७(१३५-१६१)
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......१० ....१०
सी.डी. ग्रंथान विशेष नोंध २८.२२१....२५५४). उंदरे खाधेली अने कपाई गएली छे ..२२१..... ४००. कपाई गयेली छे
....९६६१. प्रथम श्रुतस्कंध वृत्यात्मक प्रथम खंड ....२३३९- (समग्र टीका १२०००) प्रति
शोघेली छे +-२२१/............ प्रतिशुद्ध करेली छे. ६.२२२.....
1.....२०८ 1. २२२ .. १२८५३ 4.२२२/....३७५० +.२६५ ---२६५/.. १४२५० ..२२३ ....१६६७
२२३....३५७५/- अंत्य पत्रना बे टूकडा छे
२२३ .. १६०००. आदिनां ये पानां टूकडा थएला छे +.२२३/.. १८६१६ २२४....५४६५
........... अंतना बे पाना फाटी गयां छे
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सूत्रकृतांगसूत्र
जीर्णप्राया सुधर्मास्वामी.. सूत्रकृतांगसूत्रनियुक्ति
जीर्णप्राय भद्रबाहुस्थामी. -सूत्रकृतांगसूत्रवृत्ति ............... श्रेष्ठ .....शीलांकाचार्य स्थानांगसूत्र ................
मध्यम ... सुधर्मास्वामी. .स्थानांगसूत्रवृत्ति प्रथम खंड ........ श्रेष्ठ ...., अभयदेवसूरि स्थानांगसूत्रवृत्ति द्वितीय खंड ........ श्रेष्ठ ..... अभयदेवसूरि समवायांगसूत्र
जीर्णप्राया सुधर्मस्वामी समवायांगसूत्रवृत्ति
जीर्णप्राया अभयदेवसूरि भगवतीसूत्र.............
जीर्ण ... सुधर्मस्वामी भगवतीसूत्रवृत्ति .....
जीर्ण .... अभयदेवसूरि ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र.
सारी..... सुधर्मास्वामी. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्रवृत्ति
श्रेष्ठ.... अभयदवार उपासकदशांगादि सूत्र
जीर्ण .... सुधर्मास्वामी. उपासकदशांगसूत्र.
जीर्ण ... सुधर्मास्वामी. अंतकृदशांगसूत्र ...................... जीर्ण ... सुधर्मास्वामी.
अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र............... जीर्ण ... सुधर्मास्वामी १७/४....
प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्र ... जीर्ण .... सुधर्मास्वामी. विपाकसूत्रांग..
जीर्ण ... सुधर्मास्वामी. १८ ...... उपासकदशांगादि पंचागी सूत्रवृत्ति ...... १८/१.... उपासकदशांगसूत्रवृत्ति ............... जीर्ण ... अभयदेवसूरि १८/२....... अंतकृशांगसूत्रवृत्ति ................ जीर्ण ... अभयदेवसूरि .... १८/३....... अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्रवृत्ति ........./जीर्ण ....अभयदेवसूरि ... |१८/४ ....... प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्रवृत्ति ............/जीर्ण ....अभयदेवसूरि १. ग्रंथांक १ से १३३० तक के ग्रंथ वेगडगछीय झानमंडार के है।
................ २२(१६२-१८३)
.................३(१८४-१८६) ........१४८९ ....१३४(१८७-३२२) ....१४८९/.....३९(३२३-३६०)
६०(३६१-४२०) ९०(४२१-५१०) ......१०
. १७(५११-५२७) ले.१४८९-र.११२०/..... ३९(५२८-५६५)
.........१४८९]....१५८(५६६-७२३) ....र.११२८-१४८८ ....२००(७२४-९३०)
....५७(९३१-९७७) सं....र. १९२०-१४८९ ....४५(९७८-१०२२)
..४३(१०२३-१०६६)
१-९(१०२३-१०३२) ..९-१०(१०३२-१०४०) .१७-१९(१०४०-१०४२)
. १९-३५(१०४२-१०५४) ......-३२-४३(१०५५-१०६६) .........७५(१०६७-११४२)
१-११(१०६७-१०७७)। .११-१५(१०७०-१०८१)
..१५-१६(१०८१-१०८२) ...... १६-६६(१०८२११३३).
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.....८१२ .....७२० ..... १९२
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...११७०
4..२६५/....१३०० १८.२६५
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