________________
संवत
पत्र संख्या
-
झेरोक्षसी .डी ग्रंथात्रा
विशेष नोंध
१७१८.
२७
१८१६
जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग प्रथांक ग्रंथन नामस्थिति
कर्ता
भाषा १७८५ ......रघुवंशमहाकाव्यटीका ............ ....... श्रेष्ठ ..... मल्लिनाथ ..... १७८६ ...... न्यायरत्नप्रकरण शशधरसूत्र...........श्रेष्ठ..... शशधर ...
न्यायरत्नप्रकरण शशधरसूत्र टीप्पणीसह श्रेष्ठ..... शशधर, तर्कपरिभाषा......
श्रेष्ठ.....केशवमिश्र ..... तर्कपरिभाषा............
..जीर्ण .... केशवमिश्र ..... तर्कपरिभाषा अपूर्ण............... .. मध्यम ... केशवमिश्र ....... तर्कभाषाप्रकाशवृत्ति .............. श्रेष्ठ.....गोवर्धन ............. न्यायसार न्यायतात्पर्यदीपिकाटीका .... श्रेष्ठ..... जयसिंहसूरि सप्तपदार्थी ............................ मध्यम ...शिवादित्य मिश्र ....... तर्कसंग्रहदीपिका ................. -मध्यम...अन्नंभट्ट............. मंगलवादप्रश्नपद्धति .................. ..जीर्ण .... समयसुंदरजी ...........
३९.१७८६ + १७८७.६.२४२-......... प्रतिनी किनारी उंदरे करडेली छे .. १७८६ + १७८७-२४२ ......१७८८
........ प्रति चारे बाजुची उधईए खाघेली
१७९१...२८८ १७९२...२४२/....३००० १७९३ १७९४ १७९५
प्रतिनी किनारी खबाएली छे
| ग्रंथकर्ताए स्वहस्ते लखेली प्रत .१७९६
१७९५ ...
...१७९८ ... २८८ ....१२५२, प्रति पाणीथी भीजाएली
जीर्ण ..........
१७९९ ... १८००...
१८०१..
१७९६ आलापकपद्धति अपूर्ण
मध्यम ... १७९७ पड्दर्शनसमुच्चय ........... श्रेष्ठ ..... हरिभद्रसूरि ............. १७९८ ....... घड्दर्शनसमुच्चय सटीक .............. .जीर्ण .... हरिभद्रसूरि मू..........
....व.क.विद्यातिलक प्रामाण्यवाद
मध्यम ... हरिराम तर्कवागीश बादस्थल अपूर्ण शिरोमणीटीका .....
मध्यम .... न्यायग्रंथ
मध्य म........ न्यायग्रंथ अपूर्ण.
मध्यम ... सारस्वतव्याकरणदीपिकाटीका ...........मध्यम ...चंद्रकीर्ति लोकानी हुंडी बीजकसह ........... .../मध्य म...... शत्रुजयकल्प सस्तवक तथा पडिलेहणाकुलक .................. ......मध्यम .. विनयविमल सिद्धांतचंद्रिका स्वरान्तनपुंसकपर्यत .........
रामाश्रम १८०८ व्याकरण ....
....... मध्यम १८०९ ...... अनिट्कारिका सटीक त्रिपाठ ..........मध्यम ......
१८०२ --- १८०३ २८८-.......... पत्र बीजू नथी
सं.र.१७७४-ले.१८२२
१८०७
.६............१८०९
Jain Education International
For Private &Personal use Only
www.jainelibrary.org