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नाम
प्रा..
बैबैबैबैबैबैं
.. १३२ थी .. १३२ थी
.........
१९-२०
जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग ग्रंथांक ग्रंथन स्थिति | भाषा | संवत् । पत्र संख्या झेरोक्षसी .डी. ग्रंथान
विशेष नोंध |१३४/६ ...... क्षामणाकुलक श्रेष्ठ .....
................... १२मु .. १३२ थी १३४ ........... गा.१६. आ कुलकना बीजा नामो मिथ्या
............. दुष्कृत अने भावना कुलक पण छे. १३४/७... आलोचनाकुलक......
... १२-१३ .. १३२ थी १३४ १३४/८.... आलोचनाकुलक....
.... १३मु.. १३२ थी १३४/९ .... भावनाकुलक
... १३-१४ .. १३२ थी १३४/१०.... भावनाकुलक......................
१४-१५ १३२ थी १३४/११... सुलसआराधनाप्रकरण श्रेष्ठ.....
१५-१७
१३२ थी १३४/१२... नवकारफलकुलक ................... श्रेष्ठ..............
१७-१८ .. १३२ थी १३४/१३ .... मिथ्यादुकृतकुलक
१८मुं १३४/१४ ... संवेगमंजरीप्रकरण ...................... श्रेष्ठ..... देवभद्र ................
१८-१९ १३४/१५... संयममंजरीप्रकरण .............. श्रेष्ठ ..... महेश्वरसूरि .............
.. १३२ थी १३४/१६.... सुगुरुदांगडउ............. श्रेष्ठ ....
........... २०-२१.. १३२ थी १३४/१७.... सुगुरुदांगडउ.............. श्रेष्ठ ..... जिनप्रभसूरि
२१-२३ .. १३२ थी
...गा.३२ १३४/१८.... आराधना ........................... श्रेष्ठ....
२३-२४... १३२ थी १३४/१९.... भावनासंधि................ श्रेष्ठ......यशोदेव ............
२४-२६ 1.. १३२ थी १३४/२०.... आराधना .....................
.. १३२ थी १३४/२१... भावनाकुलक सोमदेव
-- १३२ थी
गा.१७ १३४/२२.... आराधनाकुलक ..........................
...... १९८३............ २७-२८ .. १३२ थी
... गा.२७ १३५....... हरिवंशपुराणगत उद्देशद्वय .........
.......... १९८३
.. १३५ थी १३६/१ ..... जीवोपदेशपंचाशिका.
.. १३५ थी १३६/२ ..... उपदेशकुलक................... १३६/३ ..... हितोपदेशकुलक....
.. १३५ थी .... गा.२५ १३६/४ ...... हितोपदेशकुलक................
.. १३५ थी १३६/५ ...... पंचपरमेष्ठिस्तव... ............
४.५ .. १३५ थी १३७.. गा.३७ १३६/६ ......नवतत्त्वप्रकरणभाष्य............. श्रेष्ठ ..... अभयदेवसूरि ............. .प्रा..............१९८३
५-९.. १३५ थी १३७ .......... गा.१५१ १३७..... व्याकरणचतुष्कावचूरि-हैमलघुन्यास .....श्रेष्ठ ..... कनकप्रभसूरि .. .....सं............. १९८३
.. १३५ थी १३७ ...२३६ ....२८१८ द्वितीयाध्याय द्वितीयपाद पर्यन्त,
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२६-२७
१३५ थी
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