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विशेषनधि संगनकारने सहागभूत थशे. आ दृष्टि आ सूचित्र अभ्यासनां मार्गदर्शक थई संपादनकारने मददरूप बने एज आशा साथे, साहित्योपासको समक्ष रजू कराई रह्युं छे. आ उद्देश जरा पण सरशे तो अमारी महेनत सफल बनी रहेशे.
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अहीं एक घणी अगत्यनी वात ए छे के आ सूचि मारे नामे छपाई छे ए हकीकत छे, पण मारा सहकार्यको अने गुरुतुल्य श्री जेसिंगभाई भोजक, श्री लक्ष्मणभाई भोजक अने श्री चमनभाई भोजक • आ भोजकबंधुओनी वर्षानी महेनत, दृष्टि अने मार्गदर्शननुं जे महत्व छे, एनो मारा उपर ऋणभार छे ते स्वीकार छु, अमारी संस्थाना ए समयना डिरेक्टर श्री दलमुखभाईना सीधा मार्गदर्शनमां आ पुस्तक तैयार थयुं छे. एटले पण आ पुस्तकमां कांईक सरळता जेवु देखाशे अने अघर काम सहेलु बनी गयुं छे. विशेषमां जैन समाजनी अने धर्मनी मने न समजाय एवी पारिभाषिक मुश्केली पं. श्री. बाबुभाईए समजावेली. श्री कनुभाई शेठ साथे यथावकाश जरूरी चर्चा करेली. आम दरेक रीते अमारी संस्थाना कार्यकरोनो शक्य एटलो साथ लईने तैयार थयेलु आ पुस्तक एक मोटो 'सहयोग' छे. डॉ. रमणीकभाई शाहे प्रूफ जोवामां सहायता करी छे तेनी सहर्ष नांध लडं कुं.
आमां रद्देली क्षतिओनी जवाबदारी मारी खरी, पण ए तरफ ध्यान दोवानी पूरी जवाबदारी तो वाचकत्रर्गनी गणु छु एटले हवे विशेष कांई बाकी रहेतु नथी.
अमदावाद
९ जून १९७८
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विधात्री वोरा संपादिका
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