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कृति उपरथी प्रत माहिती प्रत विशेष- विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
डीवीडी-५/१५ समवसरणगाथा
प्रा., पद्य, गा.१२, आदि वाक्यः जत्थ अपुवो सरणं जत्तय देवो महट्ठिओए... भांता ७०- पे.क्र. १२९, पृ. १७८B-१७९A, अर्हत्स्तोत्र आदि - विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.३-१५. पत्र-२५२+२-१=२५३., पेटाङ्क-१७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे.
कुल-४२०० श्लोक. अन्तमा पत्रांक २५००-२५२ उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ समवसरणगाथा-(सं.)टीका
सं., गद्य, आदि वाक्यः समोसरणेत्यादि द्वारगाथा समोसरणनाम... भांता ७०- पे.क्र. १२८, पृ. १७५A-१७८A, अर्हत्स्तोत्र आदि - विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण
पे. विशेष- सूचीपत्रांक-१-१४२८. प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.३-१५. पत्र-२५२+२-१=२५३., पेटाङ्क-१७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे.
कुल-४२०० श्लोक. अन्तमा पत्रांक २५००-२५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ समवसरणगाथा-(सं.)टीका
सं., गद्य, आदि वाक्यः समोसरणेत्यादि द्वारगाथा समोसरणनाम.. भांता ७०- पे.क्र. १२८, पृ. १७५A-१७८A, अर्हत्स्तोत्र आदि - विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण
पे. विशेष- सूचीपत्रांक-१-१४२८. प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.३-१५. पत्र-२५२+२-१=२५३., पेटाङ्क-१७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे.
कुल-४२०० श्लोक. अन्तमां पत्रांक २५००-२५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ समवसरणथवण जुओ - समवसरणस्तवन, आचार्य-कुलप्रभसूरि, प्राकृत, गा.२५ समवसरणप्रकरण जुओ - समवसरणस्तव, आचार्य-धर्मघोषसूरि, अपभ्रंश, गा.२४ समवसरणविचार
आचार्य-रत्नसिंहसूरि, मारुगूर्जर, पद्य, गा.३१, पाकाहेम १०२२- पे.क्र. २५, पृ. ६१-६२, प्रकरण, स्तुति, स्तोत्रादि सङ्ग्रह, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र ६८ थी ७० नथी. इसी भंडार के प्रत नं.१०१२ को भूल से नं.१०२२ लिखा गया था. असल
में १०२२ नं.की झेरोक्ष प्रति नहीं है परन्तु कम्प्यूटर में प्रविष्ट की गयी कृति माहिती सही है. समवसरणविचारस्तव
मुनि-सोमसुन्दरसूरि-शिष्य, मारुगूर्जर, पद्य, गा.३३, पाकाहेम ७७९७- पे.क्र.३, पृ. ?, संवेगकुलक-अन्नायउञ्छकुलक आदि, वि-१७मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-५ समवसरणस्तव (समवसरणप्रकरण)
आचार्य-धर्मघोषसूरि, अप., पद्य, गा.२४, आदि वाक्यः थुणिमो केवलिवत्थं वरविज्जाणन्दधम्मकित्तित्थं |... पातासंघवीजीर्ण ८६-२- पे.क्र. १७, पृ. ?, चैत्यवन्दनादि भाष्य आदि, वि-१३६९, त्रुटक
कुल झे.पृष्ठ-६० पाकाहेम ४४७२- पे.क्र. ३, पृ. ४-७, विचारषट्त्रिंशिका दण्डकप्रकरणादि, वि-१६९९, संपूर्ण
पे. नाम- समवसरणस्तव सह (सं.)अवचूरि, पे. विशेष- गाथा-२४.
___ कुल झे.पृष्ठ-४ पाकाहेम ७३०७- पे.क्र. १४, पृ. २०मुं, शीलसन्धि आदि सङ्ग्रह, वि-१५मी, संपूर्ण
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