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कृति उपरथी प्रत माहिती गणि-पुण्यकीर्ति[कृष्णर्षिगच्छ], गुरु-आचार्य-कमलचन्द्रसूरि[कृष्णर्षिगच्छ], सं., गद्य, आदि वाक्यः सर्वसिद्धिप्रदां देवीं
नमस्कृत्य सरस्वतीं... भांका १६९, पृ. ४, शीलोपदेशमाला की पञ्जिका टीका, वि-१५५५, संपूर्ण
प्रत विशेष- सूक्ष्माक्षर लिपि में लिखित प्रति.
__ कुल झे.पृष्ठ-४, डीवीडी-८६ शीलोपदेशमाला-(सं.)अवचूरि
सं., गद्य, पाकाहेम २३२८- पे.क्र.५, पृ. १२, वीतरागस्तोत्रादि अवचूरि पञ्चपाठ, वि-१५मी, संपूर्ण प्रत विशेष- वृद्धिविजये ज्ञानभंडारमा मूकेली प्रति.
कुल झे.पृष्ठ-१० शीलोपदेशमाला-(सं.)पज्जिका टीका
गणि-पुण्यकीर्ति[कृष्णर्षिगच्छ], गुरु-आचार्य-कमलचन्द्रसूरि[कृष्णर्षिगच्छ], सं., गद्य, आदि वाक्यः सर्वसिद्धिप्रदां देवीं
नमस्कृत्य सरस्वतीं... भांका १६९, पृ. ४, शीलोपदेशमाला की पञ्जिका टीका, वि-१५५५, संपूर्ण प्रत विशेष- सूक्ष्माक्षर लिपि में लिखित प्रति.
कुल झे.पृष्ठ-४, डीवीडी-८६ शीलोपदेशमाला-(सं.)शीलतरङ्गिणीवृत्ति (शीलतरङ्गिणीवृत्ति) आचार्य-सोमतिलकसूरि[रूद्रपल्लीय], सं., गद्य, रचना सं. विक्रम १२९४, ग्रं.१२९४,
कृ.विः सोमतिलकसूरिनुं आचार्य पदवी पहेलानुं नाम विद्यातिलक हतुं. पाकाहेम १६२३, पृ. २४७, शीलोपदेशमालाप्रकरण सह वृत्ति, वि-१५६७, संपूर्ण प्रत विशेष- मूलगाथा-११५.
कुल झे.पृष्ठ-१६८ पाकाहेम १०३७१, पृ. ११०, शीलोपदेशमालाप्रकरण-शीलतरङ्गिणीवृत्तिसहित, वि-१५३४, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-११० पाकाभाभा ५८, पृ. १२६, शीलोपदेशमाला शीलतरङ्गिणीवृत्तिसह किञ्चिदपूर्ण, वि-१६वी, संपूर्ण शुकराजनृपकथा-गद्य
आचार्य-माणिक्यसुन्दरसूरि, सं., गद्य, ग्रं.५००, पाकाहेम ८०५७, पृ. १४, शुकराजनृपकथा गद्य, वि-१७मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-११ शुक्लरौद्रआदि धर्मध्यान विवेचन
सं., पद्य, आदि वाक्यः ...बुद्धिमानपि गुरुः शक्तो... भांका २९३- पे.क्र. ५, पृ. १००-३५A, अर्हत्मण्डपप्रतिष्ठादि सङ्ग्रह, वि-१४६१, संपूर्ण पे. विशेष- झेरोक्ष पत्र-३-९. बीच-बीच के कुछ पत्र नहीं होने से कौन कृति कहाँ से प्रारंभ व कहाँ पर पूरी
हुई है उसका ठीक-ठीक पता नहीं चलता है. प्रत विशेष- अधिकतम कृतियां दिगम्बर विद्वान रचित है.
कुल झे.पृष्ठ-२२, डीवीडी-९१ शुभभावना उपदेश
आचार्य-मुनिचन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, गा.३३, आदि वाक्यः सुहभावणावसाओ सोयपिसाओ सुहेण... पातासंघवी ५९-२- पे.क्र. १०, पृ. ४०-४५, मोक्षोपदेशपञ्चाशत् आदि, संपूर्ण
पे. विशेष- गाथा-३३.
__ कुल झे.पृष्ठ-२८, डीवीडी-२९/४८ पाकाहेम १११५३- पे.क्र. १०, पृ. ८-९, मुनिचन्द्रसूरि-चक्रेश्वरसूरि-रत्नसिंहसूरिकृत प्रकरणसङ्ग्रह, वि-१९७९,
संपूर्ण पे. विशेष- गाथा-३३.
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