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कृति उपरथी प्रत माहिती शतक प्राचीन पञ्चम कर्मग्रन्थ-(प्रा.)बृहद्भाष्य (शतक प्राचीन कर्मग्रन्थ बृहद्भाष्य)
आचार्य-चक्रेश्वरसूरि, गुरु-आचार्य-वर्द्धमानसूरि, प्रा., पद्य, ग्रं.१४१३, आदि वाक्य:
चउबन्धणुओगविहीदुवारचउविणयमइकुसलो... पाताखेत ४६, पृ. १२३, शतकबृहद्भाष्य, संपूर्ण
डीवीडी-६२/६४ शतक प्राचीन पञ्चम कर्मग्रन्थ-(प्रा.)चूर्णि (प्राचीन पञ्चम कर्मग्रन्थ-(प्रा.)चूर्णी ), (शतकलघुचूर्णि), (लघुचूर्णि)
प्रा., गद्य, ग्रं.२३२२, आदि वाक्यः सिद्धो निद्धयकम्मो सद्धम्मपणायगो तिजगनाहो।... पाताखेत ४१-२, पृ. १४३, शतकचूर्णि, वि-१२३२, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-५८, डीवीडी-६२/६४ पातासंघवी १६-२, पृ. १२५, शतकचूर्णि, संपूर्ण प्रत विशेष- विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
डीवीडी-२२/४० वताहंस ४४८, पृ. १२०, शतकचूर्णि, संपूर्ण
डीवीडी-९९/१०० शतक प्राचीन पञ्चम कर्मग्रन्थ-(प्रा.)चूर्णितुं (सं.)विषमपद टिप्पण
आचार्य-मुनिचन्द्रसूरि, सं., गद्य, ग्रं.९५५, आदि वाक्यः प्रणिपत्यविमल केवल... तालाद ३८२, पृ. ७५, शतकचूर्णि-विषमपद टिप्पनक, वि-१३३४, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-३८, डीवीडी-९४/९६ शतक प्राचीन पञ्चम कर्मग्रन्थ-(सं.)विनेयहिता टीका (प्राचीन पञ्चम कर्मग्रन्थ-(सं.)टीका), (विनेयहिता टीका)
आचार्य-हेमचन्द्रसूरि मलधारी, सं., गद्य, ग्रं.३७००, आदि वाक्यः जयत्यभिप्रेतसमृद्धिहेतुः शमी
समाधिक्षतकर्मबीजः... भांता ४५- पे.क्र. ३, पृ. ७A-१५०B, बन्धशतक, बन्धशतकलघुभाष्य व विनेयहिता टीका, वि-१४९०, संपूर्ण
पे. नाम- बन्धशतक की विनेयहिताटीका, पे. विशेष- झेरोक्ष पत्र-८-१२०. प्रत विशेष- सर्वग्रन्थाग्र-३८६६. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. खरतरगच्छीय आ. जिनभद्रसूरिना राज्यमां आ
प्रत लखवामां आयी. जूनो नं.१८८०?
कुल झे.पृष्ठ-१२०, डीवीडी-७०/८० भांता ४६, पृ. २००, शतक प्राचीन कर्मग्रन्थ की विनेयहिता टीका, वि-१५वी, संपूर्ण प्रत विशेष- सं. १४७१ में खरतरगच्छीय जिनराजसूरि के पट्ट अन्तर्गत जिनभद्रसूरि की यह प्रत है का
उल्लेख है.
कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७०/८० शतक प्राचीन पञ्चम कर्मग्रन्थ-(प्रा.)लघुभाष्य
प्रा., पद्य, गा.२५, आदि वाक्यः नमिऊण जिणं बुच्छामि बन्धसयगे चउण्हबन्धाणं... भांता ४५- पे.क्र. २, पृ. ६०-७A, बन्धशतक, बन्धशतकलघुभाष्य व विनेयहिता टीका, वि-१४९०, संपूर्ण
पे. नाम- शतकभाष्य, पे. विशेष- झेरोक्ष पत्र-८वा. प्रत विशेष- सर्वग्रन्थाग्र-३८६६. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. खरतरगच्छीय आ. जिनभद्रसूरिना राज्यमां आ
प्रत लखवामां आयी. जूनो नं.१८८०?
कुल झे.पृष्ठ-१२०, डीवीडी-७०/८० शतक प्राचीन पञ्चम कर्मग्रन्थ-(प्रा.)भाष्य
प्रा., पद्य, गा.२४, आदि वाक्यः सङ्खामेत्तपयट्ठा सयगे पगईओनाम गाहाणं... पाताहेसं ११२- पे.क्र.७, पृ. ९५-९७, कर्मप्रकृतिप्रकरण आदि, वि-१२५८, संपूर्ण प्रत विशेष- हर्षपुरीय गच्छ में मलधारि अजितसुन्दरी गणिनी ने यह प्रति लिखवायी है. , झेरोक्ष पत्र ४० व
४१ का दो बार झेरोक्ष हुआ है.
कुल झे.पृष्ठ-४६, डीवीडी-७/१७ शतक प्राचीन पञ्चम कर्मग्रन्थ-(सं.)विनेयहिता टीका (प्राचीन पञ्चम कर्मग्रन्थ-(सं.)टीका), (विनेयहिता टीका)
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