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कृति उपरथी प्रत माहिती आत्मबोधकुलक जुओ धर्मोपदेशकुलक, आचार्य देवेन्द्रसूरि प्राकृत, गा. २२ आत्मरक्षास्तोत्र जुओ - पञ्चपरमेष्ठिनमस्कारस्तवन, संस्कृत, प्राकृत, श्लोक ८ आत्मविज्ञप्ति
आचार्य - रत्नसिंहरि, प्रा., पद्य, गा. ३०, आदि वाक्यः जयजयभुवणदिवायर तिहुयणगुणरयणसायर जिन्दि..... पाकाहेम १११५३- पे क्र. २८ पृ. ३७मुं मुनिचन्द्रसूरि चक्रेश्वरसूरि रत्नसिंहसूरिकृत प्रकरणसङ्ग्रह,
वि-१९७९.
संपूर्ण
आत्मशुद्धि
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आत्मसम्बोधकुलक
कुल झ. पृष्ठ-३५ झे
सं., पद्य, श्लोकर,
पातासंघवी ५६-२- पे.क्र. ६, पृ. ?, उपदेशमाला आदि, वि- १३वी, संपूर्ण
पे. विशेष- यह कृति इस प्रत में उपलब्ध नहीं है.
प्रत विशेष- पत्रांक अव्यवस्थित स्थिति में तथा उलटे क्रम में झेरोक्ष किया गया है. कुल झे. पृष्ठ- २२, डीवीडी - २९/४८
आचार्य - जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, गा. ३३, आदि वाक्यः मोक्खमुक्खे मायामोहं..... पाताखेत ६- पे. क्र. ७, पृ. ९६ ९९ उपदेशमालादि ५४ ग्रन्थो, संपूर्ण
प्रत विशेष शुद्ध प्रति
कुल झे. पृष्ठ- ११०, डीवीडी-६१/६३
पाताहेसं १६१- पे.क्र. ३४, पृ. २४५ - २४९, दशवैकालिकसूत्र आदि प्रकरण सङ्ग्रह, वि- १३८९, संपूर्ण
पे. विशेष - गाथा - ३३.
प्रत विशेष- प्रान्ते कृतिओनी अनुक्रमणिका आपेली छे. कुल झे. पृष्ठ- १७०, डीवीडी-८/१८
आत्मसम्बोधकुलक जुओ एगुणतीसी भावना, प्राकृत, गा. ३०
आत्मसम्बोधकुलक जुओ धर्मोपदेशकुलक, आचार्य देवेन्द्रसूरि प्राकृत, गा. २२ आत्मसम्बोधकुलक
प्रा., पद्य, गा.२१, आदि वाक्य तेलोक्के कूलमल्लरस महावीरस्सा..... पातासंघवी १४५-१- पे. क्र. २२, पृ. १६७ - १६८, चउसरण आदि, संपूर्ण कुल झे. पृष्ठ ९४ डीवीडी- ३५/५३
पाताहेसं १८९ पे.क्र. १९. पृ. १०५-१०६
आत्मसम्बोधनकुलक
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दशवेकालिकसूत्रादि प्रकरणसङ्ग्रह, संपूर्ण
प्रत विशेष- त्रुटक कुल पत्र - ४५+१५९-२०४. इसमें दूसरे क्रम के पत्रांक १८-४६ नहीं है. कुछेक पत्रों पर बीजक दिया हुआ है. कुछ पत्रों के आधे भाग खंडित हैं.
कुल झे. पृष्ठ- ८४, डीवीडी-१०/१९
आचार्य-भुवनतुङ्गसूरि[अञ्चलगच्छ], प्रा., पद्य, गा. ४३, आदि वाक्य : (१) नमिरसुर असुरविन्देहिं वन्दिय कमं वीरमभिवन्दि... (२) नमिरअसुरविन्देहिं....
पाताहेसं १६८- पे.क्र. २४, पृ. ४२अ - ४६आ, दशवैकालिकसूत्र, पाक्षिक सूत्रस्तोत्रवृत्ति, स्तुति स्तवनादि, संपूर्ण पे. नाम- आत्मसंबोधनकुलं, पे. विशेष- अपूर्ण. ताडपत्रीय पत्र ४३ ( गाथा - ११ से १८) नहीं है झेरोक्ष पत्र३५-३६.
प्रत विशेष प्रारंभिक कुछेक पत्र उभय पार्श्व खंडित होने से पाठ भी खंडित है.
कुल झे. पृष्ठ-७२, डीवीडी-९/१८
पाताहेसं १८९ पे. क्र. १०, पृ. ८२B-८६B दशवैकालिकसूत्रादि प्रकरणसङ्ग्रह, संपूर्ण
प्रत विशेष- त्रुटक, कुल पत्र-४५+१५९ २०४. इसमें दूसरे क्रम के पत्रांक १८-४६ नहीं है. कुछेक पत्रों पर बीजक दिया हुआ है. कुछ पत्रों के आधे भाग खंडित हैं.
कुल झे. पृष्ठ- ८४, डीवीडी-१०/१९
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