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कृति उपरथी प्रत माहिती लोकान्तिकस्तव
प्रा., पद्य, गा.१६, पाकाहेम ४४७२- पे.क्र.२, पृ. ३-४, विचारषटिंत्रशिका दण्डकप्रकरणादि, वि-१६९९, संपूर्ण पे. नाम- लोकान्तिकस्तव सह (सं.)अवचूरि, पे. विशेष- गाथा-१६.
कुल झे.पृष्ठ-४ लोकान्तिकस्तव-(सं.)अवचूरि
सं., गद्य, पाकाहेम ४४७२- पे.क्र.२, पृ. ११, विचारषट्विशिका दण्डकप्रकरणादि, वि-१६९९, संपूर्ण पे. नाम- लोकान्तिकस्तव सह (सं.)अवचूरि, पे. विशेष- गाथा-१६.
कुल झे.पृष्ठ-४ लोकान्तिकस्तव-(सं.)अवचूरि
सं., गद्य, पाकाहेम ४४७२- पे.क्र. २, पृ. ११, विचारषटिंत्रशिका दण्डकप्रकरणादि, वि-१६९९, संपूर्ण पे. नाम- लोकान्तिकस्तव सह (सं.)अवचूरि, पे. विशेष- गाथा-१६.
कुल झे.पृष्ठ-४ लोचप्रवेदनविधि (लोयपवेयणविही), , विभाग-१
प्रा., गद्य, आदि वाक्यः सक्कत्थएण चेइयाणिं वन्दित्ता... भांता ७०- पे.क्र.२९, पृ.३८A-३८B, अर्हत्स्तोत्र आदि - विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.३-१५. पत्र-२५२+२-१=२५३., पेटाङ्क-१७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे.
कुल-४२०० श्लोक. अन्तमा पत्रांक २५००-२५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ लोचविधि जुओ - साध्वीलोचविधि, प्राकृत लोभे सागरकथा जुओ - सागरकथा लोभे, प्राकृत, गा.९९ लोयपवेयणविही जुओ - लोचप्रवेदनविधि, प्राकृत लौकिकन्यायरत्नाकर
जैनेतर-रघुनाथ वर्मा उदासीन, सं., गद्य, आदि वाक्यः यस्माज्जातं निखिलभुवनं जीव्यते येन जातं... पुप्रे ४००, पृ. १७५, लौकिकन्यायरत्नाकर, ईस-१९५७, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- इण्डिया ऑफिस पुस्तकालय पुस्तक प्रतिलिपि-१., लेखन काल- १४.०८.१९५७ से
१५.०९.१९५७. विक्रम १८६५ मूल प्रत पर से लिखी जाने की संभावना है.
कुल झे.पृष्ठ-१७५ पुप्रे ४०१, पृ. २११, लौकिकन्यायरत्नाकर, ईस-१९५७, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- इण्डिया ऑफिस पुस्तकालय पुस्तक प्रतिलिपि-२., लेखन काल-१५.०९.१९५७ से
०२.११.१९५७. विक्रम १८६५ मूल प्रत पर से लिखी जाने की संभावना है.
कुल झे.पृष्ठ-२१० पुप्रे ४०२, पृ. २३३, लौकिकन्यायरत्नाकर, ईस-१९५७, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- इण्डिया ऑफिस पुस्तकालय पुस्तक प्रतिलिपि-३., लेखन काल-०२.११.१९५७ से. विक्रम
१८६५ मूल प्रत पर से लिखी जाने की संभावना है.
कुल झे.पृष्ठ-२३२ पुप्रे ४०३, पृ. ४२१, लौकिकन्यायरत्नाकर, ईस-१९५७, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- इण्डिया ऑफिस पुस्तकालय पुस्तक प्रतिलिपि-४., प्रतक्रम-४००-४०३ विक्रम १८६५ मूल प्रत
पर से लिखी जाने की संभावना है.
कुल झे.पृष्ठ-४२० लौकिकमासकल्याणकस्तवन
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