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कृति उपरथी प्रत माहिती योगानुष्ठानविधिकुलक (योगद्वहनविधि कुलक)
प्रा., पद्य, गा.३०,
पाकाहेम ११०७२, पृ. २, योगानुष्ठानविधिकुलक, वि-१९मी, संपूर्ण योगारम्भदिनशुद्ध्युपाङ्गयोगविधि# (योगद्वहना आरम्भदिनशुद्ध्युपाङ्गयोगविधि)
प्रा., आदि वाक्यः (१) जोगं पुण उक्खिप्पइ जई दिणनक्खत्तजोगकरणग्गाहोरत्तसोहणासए...पुव्वाइ
मूलमस्सेसा...(२) अथ योगारम्भदिनशुद्धिः...
कृ.विः अन्तिमवाक्य-जइ किमवि अत्थित्तो..आयाराइ अंगा. तेसिं उ इमा उवंगाणि. भांता ७०- पे.क्र. १७, पृ. २०B-२१B, अर्हत्स्तोत्र आदि - विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण
पे. विशेष- सूचीपत्रांक-१-१२८७. प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.३-१५. पत्र-२५२+२-१=२५३., पेटाङ्क-१७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे.
कुल-४२०० श्लोक. अन्तमां पत्रांक २५००-२५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ योगिप्रायश्चित्तविधि (योगोद्वहन प्रायश्चित्तविध(?))
प्रा., आदि वाक्यः उस्सङ्घटं पुञ्जइ अब्भत्तत्थो लेवाडयं परिवासे अब्भत्थत्थो अहोकम्मियपरिभोगे अब्भत्तट्ठो
सन्निहि परिभोगा अब्भत्तट्ठो...
कृ.विः अन्तिमवाक्य-गाढा अक्कासणगं ओहियं न पडिलहेइ न पमज्जइ...अभत्थत्थट्ठो. भांता ७०- पे.क्र. १६, पृ. २००-२०B, अर्हत्स्तोत्र आदि - विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण
पे. विशेष- सूचीपत्रांक-१-१३९०. प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.३-१५. पत्र-२५२+२-१=२५३., पेटाङ्क-१७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे.
कुल-४२०० श्लोक. अन्तमां पत्रांक २५००-२५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ योगोत्क्षेपनिक्षेपविधि (योगद्वहनो उत्क्षेपनिक्षेपविधि) प्रा., आदि वाक्यः पडिक्कमणपज्जत्ते जइ जोगुक्खेवो कओ न होइ...
कृ.विः अन्तिमवाक्य-विगइ लेसु...इत्थं खमासमणं दाऊण काउस्सग्गं करेइ. भांता ७०- पे.क्र. २१, पृ. २९B-३००, अर्हत्स्तोत्र आदि - विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.३-१५. पत्र-२५२+२-१=२५३., पेटाङ्क-१७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे.
कुल-४२०० श्लोक. अन्तमा पत्रांक २५००-२५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ योगोद्वहन प्रायश्चित्तविध(?) जुओ - योगिप्रायश्चित्तविधि, प्राकृत योगोद्वहनविधि प्रकरण जुओ - योगविधिप्रकरण, प्राकृत, गा.५८ योनिपाहुड जुओ - योनिप्राभृत, प्राकृत योनिप्राभृत (योनिपाहुड)
प्रा., आदि वाक्यः तित्थं जलवत्थवक्कलवसुविह पुज्जा... अताका ४६६- पे.क्र. १, पृ.?, योनिप्राभृत अने कथारत्नाकर, संपूर्ण प्रत विशेष- पृष्ठ माहिति नथी
डीवीडी-१०३/१०४ पुप्रे ४४४, पृ. २२१, योनिप्राभृत, संपूर्ण प्रत विशेष- डक्कन कॉलेज की प्रति पर से नकल की गयी है.
कुल झे.पृष्ठ-२३२ भांका ३०२, पृ. ३८, योनिपाहुड, संपूर्ण
डीवीडी-९२
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