________________
कृति उपरथी प्रत माहिती डीवीडी-७१/८० पाकाहेम १०५, पृ. ३७५, भगवतीसूत्रवृत्ति-अपूर्ण, अपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-३७५ पाकाहेम १००००, पृ. ३२०, भगवतीसूत्रवृत्ति, वि-१५७४, संपूर्ण
प्रत विशेष- प्रथम पत्रमा हस्त्यारूढ शासनदेव-देवी सहित समवसरण, आकर्षक चित्र छे. पाकाहेम १४७९३, पृ. ३२९, भगवतीसूत्रवृत्ति, वि-१५८५, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-३३१ पाकाहेम १४७९४, पृ. २९२, भगवतीसूत्र सटीक पञ्चपाठ, वि-१६२०, संपूर्ण प्रत विशेष- मूल ग्रन्थाग्र-१५७५०. पत्र २३०मुं डबल छे.
कुल झे.पृष्ठ-२९७ पाकाहेम १४७९५, पृ. २८३, भगवतीसूत्र सटीक मूल, वि-१५८५, संपूर्ण प्रत विशेष- मूल ग्रन्थाग्र-१५७५२. प्रथम पत्रमा समवसरण, चित्र छे.
कुल झे.पृष्ठ-२८७ पाकाहेम १४८४२, पृ. २००, भगवतीसूत्र वृत्ति, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-२०० पाकाभाभा २, पृ. २०४, भगवतीसूत्रवृत्ति, वि-१६वी, संपूर्ण
प्रत विशेष- पत्र १४० तथा १६६ डबल छे.
पाकाभाभा २२, पृ. ४६८, भगवतीसूत्रवृत्ति, वि-१५६२, संपूर्ण भगवतीसूत्रनी (सं.)टीकानो हिस्सो मूलाकोद्देशकसङ्ग्रहणी (मूलाकोद्देशकसङ्ग्रहणी)
आचार्य-अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदि वाक्यः पण्णवण वेयरागे कप्प चरित्त पडिसेवणा... पाकाहेम १२७५५- पे.क्र.५, पृ. ३०-४A, अनेकविधिविधान, शास्त्रीयविचारप्रकरण औपदेशिकविषय तथा
सुभाषितादिसङ्ग्रह, वि-१५मी, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र २७मुं कखा ३७मुं नथी अने ४३मुं डबल छे. पत्र-६३-६५ के एक ही ओर का झेरोक्ष है.
कुल झे.पृष्ठ-४१ भगवतीसूत्रनी (सं.)टीकानो हिस्सो पुदगलषट्त्रिंशिका-(सं.)अवचूरि
सं., गद्य, पाकाहेम १५८०९- पे.क्र. २, पृ. २-३, सिद्धदण्डिकाविचारआदि, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१३ भगवतीसूत्र-(सं.)पर्याय
सं., गद्य, रचना सं. विक्रम २०००, पाकाहेम ७१११- पे.क्र. २६, पृ. ७१-७४, सर्वसिद्धान्तविषमपदपर्याय, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-८४ भगवतीसूत्र-(सं.)बीजक सं., गद्य,
कृ.विः शारदाबेन चिमनभाई रिसर्च सेंटर-अहमदाबाद से प्रकाशित सूचिपत्र में भाषा प्राकृत का उल्लेख है
परंतु प्रत में भाषा संस्कृत है. पाकाहेम १५४१९, पृ. १८, भगवतीसूत्र बीजक, वि-१७६२, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रं.४९०. संवत-नेत्ररसमुनिशशिवर्षे. शारदाबेन चिमनभाई रिसर्च इंस्टिट्यूट से प्रकाशित
सूचिपत्र में भाषा प्राकृत का उल्लेख है.
कुल झे.पृष्ठ-९ भगवतीसूत्र-(सं.)विशेषवृत्ति जुओ - भगवतीसूत्र-(सं.)टीका, आचार्य-अभयदेवसूरि, संस्कृत, ग्रं.१८६१६ भगवतीसूत्रनी (सं.)टीकानो हिस्सो मूलाकोद्देशकसङ्ग्रहणी (मूलाकोद्देशकसङ्ग्रहणी)
आचार्य-अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदि वाक्यः पण्णवण वेयरागे कप्प चरित्त पडिसेवणा...
569