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कृति उपरथी प्रत माहिती पाकाहेम १००४४, पृ. ८२, बृहत्कल्पसूत्रनियुक्ति-भाष्य वृत्तिसह चतुर्थ खण्ड, वि-१६मी, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- प्रतक्रम-१००४१ थी १००४४ चारेय खण्डोना कुल ग्रन्थाग्र-४२००० छे.
कुल झे.पृष्ठ-८२ पाकाहेम १०३१५, पृ. २०७, बृहत्कल्पसूत्र नियुक्ति-लघुभाष्य-वृत्तिसहित प्रथमखण्ड, वि-१५०८, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- प्रति एक खूणेथी उंदरे करडेली छे.
कुल झे.पृष्ठ-२०७ पाकाहेम १०३१६, पृ. १३६, बृहत्कल्पसूत्र नियुक्ति-लघुभाष्य-वृत्तिसहित - द्वितीयखण्ड, वि-१६मी, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- श्लोक-१०,०००.
कुल झे.पृष्ठ-१३६ पाकाहेम १०३१७, पृ. ४१, बृहत्कल्पसूत्र नियुक्ति-लघुभाष्य-वृत्तिसहित - तृतीयखण्ड अपूर्ण, वि-१६मी, प्रतिअपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-४२ पाकाहेम १०३१८, पृ. ७७, बृहत्कल्पसूत्र नियुक्ति-लघुभाष्य-वृत्तिसहित चतुर्थखण्ड, वि-१६मी, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- पत्र पमुं डबल छे., ग्रन्थान - ५५५१.
कुल झे.पृष्ठ-७८ बृहत् कल्पसूत्र-(प्रा.)विशेषचूर्णी (कल्पविशेषचूर्णी), (विशेषचूर्णी)
प्रा., गद्य, ग्रं.११०००, पाकाहेम ६५५३, पृ. १४३, कल्पविशेषचूर्णि, वि-१४८९, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१४३ पाकाहेम ६७६८, पृ. १३८, कल्पविशेषचूर्णि, वि-१५मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-९० पाकाहेम १००४०, पृ. १५२, कल्पविशेषचूर्णि-बृहत्कल्पसूत्रविशेषचूर्णि, वि-१६मी, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र ६३-६४ भेगां छे.
कुल झे.पृष्ठ-१५३ बृहत् कल्पसूत्र-(प्रा.सं.)पर्याय
सं., गद्य, पाकाहेम ७१११- पे.क्र. १०, पृ. १७-२३, सर्वसिद्धान्तविषमपदपर्याय, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-८४ बृहत् कल्पसूत्र-(सं.)बृहट्टीकानुसारी सङ्क्षिप्तअर्थ
आचार्य-सौभाग्यसागरसूरि, सं., गद्य, पाकाहेम १०३५७, पृ. १३, बृहत्कल्पसूत्र सङ्क्षिप्तअर्थ-बृहट्टीकानुसारी, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१३ बृहत् कल्पसूत्र-(सं.)वृत्ति (कल्पवृत्ति)
आचार्य-मलयगिरिसूरि, आचार्य-क्षेमकीर्ति तपागच्छ], सं.,प्रा., गद्य, आदि वाक्यः प्रकटीकृतनिःश्रेयसपदहेतु...
कृ.विः क्षेमकीर्तिसूरि वडे सं. १३३२ मां परिपूरित. पाताहेसं १०, पृ. ४२०, बृहत् कल्पवृत्ति द्वितीय खण्ड- त्रुटित, त्रुटक पाताहेसं ११, पृ. ३३५, कल्पवृत्ति तृतीय खण्ड, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-९५२१. प्रतिलेखन पुष्पका सहित.
कुल झे.पृष्ठ-२८५, डीवीडी-२/१२ भांता ४१, पृ. १०४, बृहत्कल्पसूत्र, लघुभाष्य, टीका उद्देशक-२, अपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.१-५७५.
डीवीडी-७०/७९ पाकाहेम १००४१, पृ. २४२, बृहत्कल्पसूत्रनियुक्ति-भाष्य-वृत्तिसह प्रथमखण्ड, वि-१५७३, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- प्रथम पत्रमा क्र. ९९९०ना टिप्पणमां जणाव्या प्रमाणेनुं चित्र छे. पत्र १८३मुं डबल छे. कुल झे.पृष्ठ-२४१
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