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________________ कृति उपरथी प्रत माहिती प्रत विशेष- हर्षपुरीय गच्छ में मलधारि अजितसुन्दरी गणिनी ने यह प्रति लिखवायी है. , झेरोक्ष पत्र ४० व ४१ का दो बार झेरोक्ष हुआ है. कुल झे.पृष्ठ-४६, डीवीडी-७/१७ पाताहेसं ११४- पे.क्र. २०, पृ. १८७अ, उपदेशमालाप्रकरण आदि, संपूर्ण पे. विशेष- गाथा-१ लिखकर प्रतिलेखक ने छोड़ दिया है. कुल झे.पृष्ठ-७८, डीवीडी-७/१७ भांता ६९- पे.क्र. १, पृ. १-१०B, आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण आदि, संपूर्ण पे. विशेष- सूचीपत्रक्रम-२-१३३. प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.२-१३३ कुल झे.पृष्ठ-४०, डीवीडी-७२/८२ पाकाहेम ६५९२, पृ. १८, षडशीतिककर्मग्रन्थ प्राचीन सटीक, वि-१५मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-१७ पाकाहेम ७६६३, पृ. ६, आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण षडशीतिप्रकरण सावचूरि पञ्चपाठ, वि-१७मी, संपूर्ण आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रन्थ षड्शीति-(सं.)वृत्ति (प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रन्थ-(सं.)टीका) आचार्य-हरिभद्रसूरि[बृहद्गच्छीय], सं., गद्य, रचना सं. विक्रम ११७२, ग्रं.८५०, आदि वाक्यः नत्वा जिनं विधास्ये विवृत्तिं जिनवल्लभप्रणीतस्य।... पातासंघवी १२७-१- पे.क्र. ३, पृ. १६१, कर्मस्तव सटीक आदि, वि-१२८८, संपूर्ण पे. विशेष- छेल्लां अने वचलां पत्र नथी. डीवीडी-३४/५२ पाकाहेम ६५९२, पृ. १८, षडशीतिककर्मग्रन्थ प्राचीन सटीक, वि-१५मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-१७ आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रन्थ षड़शीति-(सं.)वृत्ति आचार्य-मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, पातासंघवी ६५-२, पृ. १३३, षडशीति प्राचीन कर्मग्रन्थवृत्ति, वि-१२५८, संपूर्ण प्रत विशेष- आदिना पत्र-२ खराब छे. पाछला १२० थी खराब छे. भीमदेवराज्ये लिखिता. डीवीडी-३०/४९ पातासंघवी १२७-२- पे.क्र. १, पृ. १२१-१५१, षडशीति सटीक आदि, वि-१३३२, संपूर्ण पे. विशेष- वचमा २३ पत्र नथी-तेनी नोंध साथे ज छे. डीवीडी-३४/५२ आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रन्थ षड्शीति-(सं.)वृत्ति आचार्य-यशोभद्रसूरि, गुरु-आचार्य-श्रीचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदि वाक्यः आगमिकवस्तुगोचर विचारसारप्रकरणपदजाता... पाताहेसं ९५, पृ. १८१, आगमिकवस्तुविचारसार प्रकरण वृत्ति सहित, संपूर्ण डीवीडी-७/१६ आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रन्थ षड़शीति-(सं.)अवचूरि सं., गद्य, पाकाहेम ७६६३, पृ. ६, आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण षडशीतिप्रकरण सावचूरि पञ्चपाठ, वि-१७मी, संपूर्ण आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रन्थ षड्शीति-(प्रा.)टिप्पनक (चतुर्थकर्मग्रन्थ प्राचीन-(प्रा.)टिप्पनक) गणि-रामदेव गणि, प्रा., गद्य, वताकांति ४१०, पृ. ७०, षडशीतिका प्राकृत वृत्ति, संपूर्ण डीवीडी-९७/९८ आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रन्थ षड्शीति-(सं.)वृत्ति (प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रन्थ-(सं.)टीका) आचार्य-हरिभद्रसूरि[बृहद्गच्छीय], सं., गद्य, रचना सं. विक्रम ११७२, ग्रं.८५०, आदि वाक्यः नत्वा जिनं विधास्ये विवृत्तिं जिनवल्लभप्रणीतस्य।... 39
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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